कहानीसामाजिकव्यंग्य
लघुकथा
सत्ता हस्तांतरण
"क्या किटी-पार्टी अगले महीने नहीं रख सकते?"
"पार्टी तो फिक्स हो गई है। पिछले महीने भी मुझे, ऑफिस में आवश्यक काम के चलते पार्टी कैंसिल करनी पड़ी थी और अब.. फिर से डेट फिक्स कर, फिर से कैंसिल करना.. ना, ना..मुझे अपनी सहेलियों के बीच अपना मजाक नहीं बनवाना है।
बहरहाल, तुम्हें कोई दिक्कत है क्या.. कोई काम वगैरह की।"
"काम की दिक्कत! भला, कभी काम की दिक्कत दिखाई है मैंने!
हर काम, दिल लगाकर करता हूँ। जिस दिन पार्टी हो, उस दिन तो स्पेशली। एक से बढ़िया एक डिश बनाने से लेकर, खाना सर्व करने तक.. हर काम में परफेक्शन। अब तो सबके हिसाब से, कार्ड शफलिंग करना भी सीख गया हूँ।"
"मालूम है.. मालूम है.. अब ज्यादा अपने मुँह मियां मिट्ठू मत बनो। दिक्कत बताओ क्या है?"
"बरसों बाद माँ, पहली बार घर आ रही है।"
"तो.."
"माँ के राज में मैंने, हमेशा बादशाही जिंदगी जी है और अब, जब माँ मुझे, ये सब करते देखेंगीं तो उन्हें अच्छा नहीं लगेगा।" लटके चेहरे से उसने अपनी पत्नी के सामने से झूठे बर्तन उठाए और रसोईघर की ओर मुड़ गया।
लक्ष्मी मित्तल
पति पत्नी का रिश्ता समझदारी का रिश्ता होता है, पति के स्वाभिमान को आहत कर के एक पत्नी खुश नहीं रह सकती।
संवेदनशील कहानी. लेकिन हदे तब पार होती जब शुरुआत से ही आप किसी के वश में ऐसे रहते हो. इतना पति गैर गुजरा हो गया जो नौकर बन गया.
इस सत्ता का भी अपना ही मजा है.....
धन्यवाद आपका☺️
लक्ष्मी!बेहतरीन लिखती हो ....शुभाशीष
मैम, दिल से आभार आपका
भावपूर्ण रचना..!
जी हार्दिक आभार आपका आदरणीय।
कड़वा है लेकिन आज का सत्य है यह। उम्दा लेखन
बहुत धन्यवाद ☺️