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खूंटी पर टंगी वर्दियां - Ankita Bhargava (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

खूंटी पर टंगी वर्दियां

  • 339
  • 4 Min Read

खूंटी पर टंगी वर्दियां

डोल रही हैं हौले हौले
खूंटी पर टंगी वर्दियां
मद्धिम सी हवाएं
भर रही हैं उनमें प्राण
कि लग रही है चैतन्य ,
हैं सजने को आतुर
फिर उन बांकुरों के तन पर
जो वार दें सर्वस्व अपना वतन पर

नहीं जानतीं, वह तो पहले
ही कर गया
खुद को अर्पण देश पर
और हो गया
उसी की माटी में एकाकार

बस अब बाकी हैं उसकी
कुछ बातें, कुछ किस्से ,
कुछ यादें, कुछ वादे
थोड़े निरर्थक, थोड़े अर्थपूर्ण,
कुछ वादे...
छिपी भविष्य की कोख में
जिनकी नियति...

होंगे पूर्ण! या रह जाएंगे अपूर्ण ?
अपूर्ण! उन सपनों की तरह,
तोड़ कर फेंका था जिन्हें किसी ने
अपनी कलाइयों से...
टूटी चूड़ियों की तरह...

अपूर्ण! जैसे हो...
मांग में सजी वह सिंदूरी आभा
धुल गई जो आंसुओं की बरसात में
एक दिन और...
जम गई धरा पर
लहू की तरह

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Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

बहुत.... खूब...

Ankita Bhargava3 years ago

जी शुक्रिया

Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

बहुत ही बढ़िया

Ankita Bhargava3 years ago

जी शुक्रिया आपका

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी

Ankita Bhargava3 years ago

आभार सर

वो चांद आज आना
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तन्हाई
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प्रपोजल
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माँ
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