कहानीसामाजिक
बिट्टो
बहुत भीड़ थी स्टेशन पर लग रहा था जैसे पूरा लखनऊ ही स्टेशन पर आ गया है।ट्रेन के डिब्बे में भी बहुत भीड़ थी फिर भी किसी तरह लोगों को ठेल ठाल कर आखिर वह डिब्बे में चढ ही गई। इस जद्दोजहद में किसने कहां छुआ यह देखने का उसे होश ही कहां था। वह नारंगी रंग की सिंथेटिक साड़ी बदन पर कस कर लपेटे थी और ब्लाउज भी कुछ ज्यादा ही गहरे गले का पहने हुए थी। उसके परिधान को देख कर एकबारगी को समझ ही नहीं आ रहा था कि वह खुदको छुपाना चाहती है या दिखाना। सस्ते मेकअप की एक मोटी परत अपने चेहरे पर चढाए वह डिब्बे में मौजूद अन्य महिलाओं से अलग लग रही थी। उसके हावभाव भी थोड़ा अलग ही थे। इसीलिए सबके आकर्षण का केंद्र भी बनी हुई थी, खासकर पुरुषों के, डिब्बे में मौजूद सभी पुरुष उसे कुछ अलग सी नज़र से ताक रहे थे, कुछ सभ्य होने का दिखावा करते हुए छुप कर तो कुछ खुलेआम पर ताक सभी रहे थे।
डिब्बे में मौजूद औरतें भी कुछ अलग सा नजरिया लिए उसके बारे में आपस में खुसर फुसर कर रही थीं। मगर कौन उसे कैसी नज़रों से देख रहा है ना तो उसे इस बात की फिक्र थी और ना अपने प्रति लोगों के नजरिए की वह सब पर एक गहरी नज़र डाल अपनी सीट पर आ कर बैठ गई। असल में ना तो उसे पुरुषों से कोई लेना देना था और ना ही महिलाओं से बल्कि उसके आकर्षण का केंद्र सामने की सीट पर अकेली बैठी हुई लड़की थी। जब से डिब्बे में चढी तभी से उसकी नज़र उस चौदह पंद्रह साल की लड़की पर अटकी हुई थी। किसी महंगे प्राइवेट स्कूल की ड्रेस पहने वह लड़की अमीर घर की लग रही थी। स्कूल बैग को कस कर अपने सीने से चिपकाए वह चौकन्नी सी इधर उधर देख रही थी, थोड़ी डरी हुई भी लग रही थी।
वह ध्यान से उस लड़की के हाव भाव देख कर उसकी मनःस्थिति का अंदाज़ा लगाने की कोशिश करने लगी। वह किसी से कुछ पूछ कर उस बच्ची को परेशानी में नहीं डालना चाहती थी, मगर इतना तय था कि वह लड़की घर से भाग कर आई थी और यदि अभी ना संभाला गया तो किसी बड़ी मुसीबत में फंस सकती थी।
जाने क्यों उस लड़की में कहीं ना कहीं उसे अपना अक्स दिखाई दे रहा था। वह भी तो एक दिन यूं ही घर से निकल आई थी, बिना किसी से पूछे, बिना किसी को कुछ बताए। घर से निकली तो आंखों में एक सपना सजा कर थी कि एक दिन बड़ी अभिनेत्री बन कर एक दिन मां बापू का नाम पूरी दुनिया में रोशन कर देगी, पर उसका सपना बस सपना बन कर ही रह गया। उस दिन घर की दहलीज लांघना उसके जीवन की सबसे बड़ी भूल सिद्ध हुई और उसकी ज़िंदगी जाने कहां से कहां पहुंच गई। अचानक उसने देखा उस बच्ची की आंखों में आंसू थे जिन्हें वह छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी। ट्रेन ने सीटी दे दी थी कुछ ही देर में ट्रेन लखनऊ का प्लेटफार्म छोड़ने को तैयार थी, अब वह और इंतज़ार नहीं कर सकती थी उसने अपना मोबाइल उठाया और कुछ टाइप करने लगी।
ट्रेन के प्लेटफार्म छोड़ने के साथ ही वह कुछ बेचेन सी दिखाई देने लगी और उन्नाव पहुंचते पहुंचते तो जैसे उसकी बेचेनी की कोई हद ही नहीं रही। वह कभी खिड़की से बाहर देखने लगती तो कभी अपने हाथों को मसलने लगती। लोग उसकी हर हरकत को बड़े ही ध्यान से देख रहे थे मगर उसे किसी से कुछ लेना देना नहीं था, वह तो जैसे अपने आप में ही नहीं थी। ट्रेन उन्नाव का प्लेटफार्म बस छोड़ने ही वाली थी कि एक दंपति व्याकुल से डिब्बे में घुसे, 'मम्मी-पापा!' सामने की सीट पर बैठी वह बच्ची उन्हें देख कर ज़ोर से चिल्लाई। उन दोनों ने भी उसे 'बिट्टो' कह कर सीने से चिपटा लिया। ट्रेन के डिब्बे में मौजूद सभी यात्री इस दृश्य को आश्चर्य से देख रहे थे सिवाय उसके। उसके चेहरे पर हैरानी नहीं राहत के भाव थे। उसने अपनी आंखों से छलकने को आतुर आंसुओं को पल्लू में समेट लिया और फिर से वही कातिल मुस्कान अपने होठों पर सजा ली जिसके लिए वह जानी जाती है।
'हमारी बेटी दसवीं में नंबर कम आने पर डांट के डर से घर से भाग रही थी, मगर आप सबमें से किसी ने व्हाट्स एप पर हमारी बेटी के फोटो के साथ यह मैसेज वायरल कर हमारी बेटी को हमसे मिलाने में मदद की है। मैं यह तो नहीं जानता कि वह फरिश्ता कौन है मगर आप में से जो कोई भी मैं उसका दिल से शुक्रिया करता हूं।' उस व्यक्ति ने हाथ जोड़ कर कहा। हर कोई इस भले काम का श्रेय लेना चाहता थि मगर क्या कहे यह कोई नहीं समझ पा रहा था। किसी ने कुछ नहीं कहा, उसने भी नहीं। कहने की जरूरत भी नहीं थी, उसके लिए यही खुशी क्या कम थी कि उसने आज एक बिट्टो को अंधेरी गलियों में खोने से बचा लिया। काश उसे भी कोई फरिश्ता मिल गया होता तो आज वह भी चंपा नहीं अपने बापू की बिट्टो होती।
बहुत ही सुन्दर कहानी..! उद्देश्य परक..!
शुक्रिया सर