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"वह"
कविता
हाँ वही इश्क करना है मुझे
मैं आज भी वहीं खड़ा हूँ।
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
मैं और वह
वह जो मेरे हो न सके
दीप वह फिर से जलेगा
मुस्कुरा कर वह कह के चले गए।।
अपना वह घर पुराना...
मै आज भी वही हूं
वह आदमी
"क्यो प्यासा रह जाता है"?
वह फूल कांटा ही चुभाता है
वह गुलाब के फूलों का बाग
ख़त में उसके आज भी वही ख़ुश्बू आती है
जीवन वह है बशर जो हम ने जिया है
*ऐतबार जहां किया वहीं पे फ़रेब मिला*
*दश्त का भी दस्तूर होता है*
वहशीपन का शिकार होती मानवता
किराए का दफ्तर
जो दिखाई दे वह सच हो, यह सच नहीं
आवाज़ वही है
वह शख्स अनजाना सा
वसवसे और वहम में गुज़र गई
सामने इक किताब वही
परिंदा कहीं भी जाए शामको वहीं लौट आएगा
कहानी
बिट्टो
फिर वही तन्हाई
तेज़ धूप
वह घटना
वह परी
वह त्योहार
वह ज़माना (यह 2080 की बात है)
वह वृक्ष
वह खत....!!
जहाँ चाह वहॉं राह
" सासु वही जो बहू मन भाए " 💐💐
"वह मुझको छोड़ गया मां" 🌺🌺
लेख
था वहम मेरा...
इश्क़
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