कविताअन्य
हम ऐसा ऐसा क्या किये जाे तुम बदलने लग गये ??
अभी ताे समां बंधना शुरू हुई है अभी से जलने लग गये ??
अब और कितना दिल के जख्म दिखायें ??
तेरे शहर वाले बड़े जालिम है दिल निकाल लेते है
अब भी एक चाह है कि काेई राही बन जाता
पथ के रथ पर है काेई साथी ही बन जाता
यूं चल पड़ा हूँ तुझसे आलाप करने काेई विवाद ताे नहीं ?
राह में काली राहें बहुत मिलेगी काेई राज़ ताे नहीं ??
बयार का क्या वयां करें ये ताे खफ़ा करती है ?
अकेला रहूं ताे साथ साथ रहूं ताे दफ़ा करती है ।।
जब मुहब्बत है तब भी तुम तकरार करते
इससे ताे अच्छा था कि हम इज़हार ही ना करते
यूं मन्द-मन्द से महकने लगे
वाे फिज़ाओं में घुलने लगे
अब क्या हुआ जाे
रूह में भी समाने लगे
इक राह काे निकल पड़ा हूं पता नहीं अब काैन क्या दिखायेगा ??
फिकर ना कर जिसने दिया है गम मुझे बेहिसाब उसका शहर भी आयेगा ।।
कभी हुआ करती ज़िन्दगी शहद सी अब अकेले ही जी लेता हूँ
जब भी आती है याद उसकी एक चुस्की चाय की पी लेता हूँ
दिल रख दिया है मैंने तिखाल में काेई ताख ना जाना
अभी लगा हूँ गुफ्तगूं में काेई झांक ना जाना
ऐ! गुमनाम मैं आज भी सुन्दर सपना लिये सज़ा हूँ
जहाँ छाेड़ा था तूने मुझे कभी आज भी मैं वहीं खड़ा हूँ
---शिवम् पचाैरी
फ़िराेज़ाबाद