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वह परी - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीअन्य

वह परी

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  • 15 Min Read

यह कहानी बहुत पुरानी है। किसी गांव में अशेष नित्यानंद चौधरी हुआ करते थे। 18 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया था। विवाह के कई वर्ष बीत गए मगर संतान सुख से वंचित ही रहे। पत्नी गुणवती, सुशीला, मृदुभाषी थी। मगर मां नहीं बन सकती थी। घरवालों के समझाने और जोर- जबरदस्ती से दूसरा विवाह करना पड़ा। नई पत्नी बेहद आकर्षक, मृगनैनी, गजगामिनी ,मोहिनी थी। अब चौधरी जी कुछ दिन में पहली पत्नी के सारे गुणों को भूल बैठे। नई पत्नी में ही मन लगा बैठे। दुखी होकर पहली पत्नी विलाप करते हुए गांव से निकलकर एक सूनी डगर पर चल पड़ी। चलते-चलते जब थक गई, तो एक बावड़ी के पास बैठकर आंखों से जल धारा बहाने लगी ।बहुत देर रोती रही। अचानक उसने जो देखा , उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। इस युग में परी..! हां परी ही तो थी।पंख नहीं थे,लेकिन पानी के बुलबुले सी पानी में तैर रही थी।हां, उसने सुना था अपनी शहर में रहने वाले मामा से कि यह एल्बे नदी में रहती हैं और हवा में भी विचरण करती हैं।
अगर सूरज की रोशनी इन तक पहुंच जाए तो ये परियां पानी के भीतर इंद्रधनुषीय रंगों में बिखर जाती हैं। उसने ध्यान से उसकी ओर देखा वह बेहद खूबसूरत सुनहरे और पारदर्शी पंखों वाली परी थी।
 उसके नैन-नक्श बेहद तीखे और भौंहे एकदम सीधी थी।उसका चेहरा कोमल था।कुछ देर के लिए सेठानी अपना दुःख भूल गई।
परी ने पानी से गर्दन निकाल कर सेठानी के दुखी होने और रोने का कारण पूछा। सेठानी ने अपनी कहानी शुरू से अंत तक बता दी। परी ने कहा," बस इतनी सी बात इस बावड़ी के जल से तीन बार आचमन करो और यहीं बैठ कर चौधरी का इंतजार करो। देखना,पालकी सजा कर, नंगे पांवों तुम्हें लेने आएंगे।और वही हुआ!
थोड़ी देर बाद देखती क्या है कि पालकी आ रही है और पीछे -पीछे बैलगाड़ी पर चौधरी हैं। चौधरी बदहवास थे, देखते ही बोले," सुनंदा, कहां चली गई थीं बिना बताए, मैं तो तुम्हें हवेली में न पाकर हलकान हो रहा था।अब जो कुछ भी है घर चल कर बताना। आओ, जल्दी पालकी में बैठो। सुनंदा की खुशी का ठिकाना न रहा खुशी-खुशी घर लौट गई। कुछ दिनों बाद विशाखा, चौधरी की दूसरी पत्नी ने देखा कि चौधरी का अनुराग पहली पत्नी के प्रति कुछ अधिक ही हो रहा है ,तो उसने भी रूठ कर घर से चले जाने का प्रयोजन किया, और चल पड़ी। चलते- चलते वह भी बहुत दूर निकल आई। संयोग से उसी बावड़ी के पास वह भी आकर रुकी। तभी वहां वही परी फिर अवतरित हुई। उसने इस बार विशाखा से उसके घर छोड़कर आने का कारण पूछा। विशाखा ने शुरू से अंत तक सारी बात कह डाली। परी ने कहा," इसी बावड़ी के जल से तीन बार आचमन करो, चौधरी तुम्हें सप्रेम घर लिवा ले जाएंगे।"
"परी रानी, मैं चाहती हूं,सेठ मुझे पहले से भी अधिक प्रेम करें।"
"जरुर ऐसा ही होगा। पहले भी एक दुखियारी ऐसा ही चाहती थी।इस बावड़ी के जल के तीन बार आचमन से उसकी मनोकामना पूरी हुई।तुम्हारी भी होगी।"ऐसा कहकर परी अंतर्ध्यान हो गई। विशाखा ने सोचा तीन बार करने से क्या होगा, मुझे सुनंदा से अधिक मान -सम्मान और प्रेम चाहिए! उसने अनेकों बार आचमन किया।
नतीजा क्या हुआ? चौधरी लेने नहीं आए। धीरे-धीरे अंधेरा गहराने लगा। पास के जंगल से सियारों की आवाज़ सुनाई देने लगी।डर से कांपती विशाखा अब उल्टे पैरों जितनी तेज़ दौड़ सकती थी, दौड़ती हुई वापस हवेली लौट आई।
अब उसने चौधरी से जितना ध्यान और प्यार मिल रहा था उसी में सब्र करने की कोशिश की।
गीता परिहार
अयोध्या

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर और रोचक..!

Gita Parihar3 years ago

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद

दादी की परी
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