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वह शख्स अनजाना सा - Kalpana Mishra (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

वह शख्स अनजाना सा

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वह अनजाना सा,वह मनचाहा सा,
मेरे सपनों का शहजादा सा,
लुकता छुपता दिखता बादल सा,
मेरा दिल पुलकित होता बच्चे सा,
मेरा मन नाचता मोर,सा
वह शख्स अनजाना सा
मेरे पास से गुजरा ताजे हवा के झोंके सा
वह मेरा चाॅद मै उसकी चांदनी
अचानक कुछ गुजरा तूफान सा
पिता जी का पड़ा था तमाचा सा
वह अनजान शख्स गायब हो गया था
गधे के सिर से सींग सा,
बन गय था वह मौसम सा
मै करने लगी काम मशीन सी
पिताजी की मुस्कराहट खिल गयी रोशनी सी
कहा पहले काम फिर आराम
मै मुस्कुराती उधार सी
वह शख्स अनजाना सा था मगर प्यारा सा
सोचकर मैं मंद मंद मुस्काई थी।

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