कहानीसामाजिकप्रेरणादायकलघुकथा
रोटी और चंद सिक्के
रोज सुबह रंगीन खड़िया और कटोरा लेकर फलक पर नया सूरज छापने निकल पड़ता हूँ। काले फलक पर अपने घुटने और कोहनियां छिलवाता मैं आखिरकार कुछ घंटों की मेहनत से एक नए सूरज की रचना कर ही लेता हूँ फिर वह सूर्य शाम घिरने तक धुंधला पड़ जाता है।
मैं उस धुंधले सूर्य के चारों ओर बिखरे सितारे अपने कटोरे में जमा करता हूँ ताकि अपने परिवार के उदर निर्वाह के लिए चांद खरीद सकूं।
मैनें सुन रखा है कि सूर्य की ऊंचाई चांद से ज्यादा है। चांद तक इंसान पंहुच सकता है लेकिन सूरज को पाना मुश्किल है मगर मैं तो सूरज को रोज ही पा लेता हूँ और रोज ही मैं सूर्य की गर्म सतह पर घुटने छिलवाता उसमें अपने रंग भरता हूँ।
मेरे लिए चांद की ऊंचाई सूर्य से ज्यादा है क्योंकि जिस दिन मैं तारे नही समेत पाता उस रोज मुझे चांद भी नही मिलता बिल्कुल अमावस की रात की तरह।
कई बार पुलिस या नगरपालिका अधिकारीयों के जूतों द्वारा मेरे सूर्य को ग्रहण भी लग जाता है। वे मेरे सूर्य को अपने जूतों से ढककर मेरी खूब पिटाई करते हैं तब मैं अपने हाथ सूर्य को न जोड़कर उस ग्रहण के जिम्मेदार जूतों को जोड़ता हूँ।
रोज मेरे सूर्य को नमस्कार करने वाले नही जानते कि मैं रात के चांद की चाहत में रोज सुबह का सूर्य गढ़ता हूँ ।
#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)
वाह..! बहुत ही खूबसूरत ...!👌👌
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।
बहुत खूब बेहतरीन रचना
आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।
आपकी रचनाओं की सराहना चंद शब्दों में व्यक्त करना सूर्य को दीपक दिखाने की भाँति ही है।
यह आपकी ज़र्रानवाज़ी है । धन्यवाद आपका ।
यह लघुकथा निश्चित रूप से इस प्रतियोगिता की बेहतरीन प्रविष्टियों में से एक होगी
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका ।