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रोटी और चंद सिक्के - Anil Makariya (Sahitya Arpan)

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रोटी और चंद सिक्के

  • 489
  • 6 Min Read

रोटी और चंद सिक्के

रोज सुबह रंगीन खड़िया और कटोरा लेकर फलक पर नया सूरज छापने निकल पड़ता हूँ। काले फलक पर अपने घुटने और कोहनियां छिलवाता मैं आखिरकार कुछ घंटों की मेहनत से एक नए सूरज की रचना कर ही लेता हूँ फिर वह सूर्य शाम घिरने तक धुंधला पड़ जाता है।
मैं उस धुंधले सूर्य के चारों ओर बिखरे सितारे अपने कटोरे में जमा करता हूँ ताकि अपने परिवार के उदर निर्वाह के लिए चांद खरीद सकूं।
मैनें सुन रखा है कि सूर्य की ऊंचाई चांद से ज्यादा है। चांद तक इंसान पंहुच सकता है लेकिन सूरज को पाना मुश्किल है मगर मैं तो सूरज को रोज ही पा लेता हूँ और रोज ही मैं सूर्य की गर्म सतह पर घुटने छिलवाता उसमें अपने रंग भरता हूँ।
मेरे लिए चांद की ऊंचाई सूर्य से ज्यादा है क्योंकि जिस दिन मैं तारे नही समेत पाता उस रोज मुझे चांद भी नही मिलता बिल्कुल अमावस की रात की तरह।
कई बार पुलिस या नगरपालिका अधिकारीयों के जूतों द्वारा मेरे सूर्य को ग्रहण भी लग जाता है। वे मेरे सूर्य को अपने जूतों से ढककर मेरी खूब पिटाई करते हैं तब मैं अपने हाथ सूर्य को न जोड़कर उस ग्रहण के जिम्मेदार जूतों को जोड़ता हूँ।
रोज मेरे सूर्य को नमस्कार करने वाले नही जानते कि मैं रात के चांद की चाहत में रोज सुबह का सूर्य गढ़ता हूँ ।

#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)

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Nidhi Gharti Bhandari

Nidhi Gharti Bhandari 3 years ago

निःशब्द👌👌👌

Anil Makariya3 years ago

जी धन्यवाद आपका

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

वाह..! बहुत ही खूबसूरत ...!👌👌

Anil Makariya3 years ago

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब बेहतरीन रचना

Anil Makariya3 years ago

आपका बहुत-बहुत धन्यवाद ।

Kumar Sandeep

Kumar Sandeep 3 years ago

आपकी रचनाओं की सराहना चंद शब्दों में व्यक्त करना सूर्य को दीपक दिखाने की भाँति ही है।

Anil Makariya3 years ago

यह आपकी ज़र्रानवाज़ी है । धन्यवाद आपका ।

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

वाह बेहतरीन

Anil Makariya3 years ago

धन्यवाद आपका ।

Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

यह लघुकथा निश्चित रूप से इस प्रतियोगिता की बेहतरीन प्रविष्टियों में से एक होगी

Anil Makariya3 years ago

बहुत-बहुत धन्यवाद आपका ।

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