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फ़िक्र - Jyotsana Singh (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

फ़िक्र

  • 176
  • 5 Min Read

फ़िक्र

“साथ हम भी चलेंगे।”
“ओफ़ओ !”
“हर वक्त हमें तुम्हारी फ़िक्र रहती है।”
“तुम दोनो ने तो मेरी साँसो पर पहरा लगा रखा है।”
“हमें बस तुम्हारी चिंता है आख़िर!”
बीच में उन्हें टोकते हुए वो बोली।
“मैं अब बालिग़ हूँ बीस साल की हर वक्त यूँ मैं बंधन में नहीं रह सकती जब तुम साथ रहते हो तो मेरी आज़ादी में विघ्न पड़ती है।”
“अच्छा एक दो साल और हमें साथ रहने दो फिर तुम अपनी मनमर्ज़ियाँ कर लेना।”
उसने ग़ुस्से से गाड़ी का गेट खोला और उसमें बैठ गई वो दोनो वहीं कुर्सी पर पड़े उसे अभी भी याचना भरी नज़रों से देख रहे थे।
पर वह अपने ही जोश में उन्हें अभी तक नज़रअंदाज़ कर रही थी।
तभी उसके मोबाइल पर कुछ आँकड़ों का एक मैसेज आया और उसने गाड़ी से उतर कर उन्हें अपने साथ ले लिया।
अब मास्क उसके मुँह पर लगा था और सेनेटैजार पानी वाली बोतल की जगह पर रखा ख़ुशी से झूम रहा था।

ज्योत्सना सिंह
लखनऊ
7:53am.
27-7-2020

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Jyotsana Singh

Jyotsana Singh 3 years ago

शुक्रिया अंकिता री पोस्ट के लिए

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर और सामयिक..!

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

सुन्दर और सामयिक..!

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