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"गई"
कविता
ज़िंदगी
वो जो रह गई उन बातों का क्या?
ठुकराई गई
कलम-मिल गई मुझे शादमानी
वो चली गई
माँ भारती शर्मसार हो गई
जाते जाते दे गई वो मेरी आंखों में पानी
चिड़िया पिंजड़े में कैद हो गई
मिल गई मुझे शादमानी
उनसे जो हमारी ये मुलाकात हो गई
हाँ मैं थोड़ी बदल गईं हूँ
क्या हो गई हालात
सब कुछ ये सरकार खा गई
बहारें आ गई
बहारें आ गई
फोन ऐ मोहब्बत
थम गई ताल
मिल गई मुझे शामदानी
लो आज पूरी होगई हमारी अधूरी कहानी...
मोहब्बत सी हो गई है, तेरे एक इंतजार में...
किवाड़ खा गई
तन्हा होकर रह गई जिंदगी
हयात क़ज़ा की मोहताज बनकर रह गई है
*हम से ही "बशर" हमारी बात हो गई*
*ख़त्म आदमी की पहचान हो गई *
मुकद्दस आयतें हो गईं यादें हबीब की
आंखें सजल हो गई
*माटी में माटी होने दफ़्न आ गई*
जिन्दगी की जुस्तजू ही जां ले गई
*दुश्मनी सस्ती हो गई है*
हो गई पहचान उसे
कद काठी किरदार की बड़ी हो गई है
जिंन्दगी हमें कहाँ कहाँ ले गई
कानों को हो गई है आदत सुनने की आवाज़ उनकी
मसर्रतें बंट गईं खुशनसीबों में
ख़्वाब से गुज़र गई रात अपनी
फिरसे निखर गई रात अपनी
उम्र पक गई मग़र हम कच्चे रह गए
मंहगी यहाँ जमीनें कमबख़्त हो गई
अब्र बनके मानसपटल पे छा गई
मानो जिंदगी मिल गई ,
वसवसे और वहम में गुज़र गई
नादानी और अहम में गुज़र गई
ईद भी आकर चली गई
मुग़ालते में गुज़र गई
चर्चे 😍
शब -ए-ग़म बदनाम हो गई है
जिंदगी हमको जीकर चली गई
ख़्वाहिशों और हसरतों में रह गई कमियां
सफ़र ज़िन्दगी की आसान हो गई होती
मनके पिंजरे से हिरासत न गई
रोशन चेहरा तेरा ☺️
कहानी
रस्सी जल गई पर बल नहीं गया
" मिट गई दूरियां "💐💐
छाह खो गई
लेख
मेरे द्वारा की गई पुस्तक समीक्षा
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