Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
ज़िंदगी - Ankita Bhargava (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

ज़िंदगी

  • 149
  • 4 Min Read

वक्त के समंदर में
ज़िंदगी!
वक्त के समंदर में
ज़िंदगी!
हो कर कतरा कतरा
दूर तलक बहती चली गई
बंद थीं मुट्ठियां
तेरी भी और मेरी भी
फिर भी बंद मुट्ठियों से
रेत सी फिसलती चली गई
बहुत खुश है हर वो शख्स
आज अजनबी बनकर
जो कभी बसा करता था
मेरी आंखों में ख्वाब की तरह
ज़िंदगी भी कहां किसी की सगी थी
बस सबको ठगती चली गई
लगा रखे थे दिल पर
सब्र के सैंकड़ों ताले कि
लबों से आह ना निकले
पर ज़िंदगी तो ज़िंदगी थी
हर रोज़ ख्वाहिशों के
नये नश्तर चुभाती चली गई
लबरेज थी मेरे मन की गागर
मासूम मुस्कुराहटों से
पढ़ाए जब सबक
ज़िंदगी ने दुनियादारी के
हर मासूमियत
चालाकियों में ढलती चली गई

images_1596286470.jpeg
user-image
Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर स्रजन..! जिन्दगी बहुत कुछ सिखा देती है. बस कौन जल्दी सीखता है..!

शिवम राव मणि

शिवम राव मणि 3 years ago

अच्छा लिखा

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया

Mamta Gupta

Mamta Gupta 3 years ago

बहुत सुन्दर

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया

Nidhi Gharti Bhandari

Nidhi Gharti Bhandari 3 years ago

वाह...

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया

वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg