कवितागजल
आज का दिन
आज का दिन खिला खिला सा है
तेरा आना तो इक दुआ सा है
अक्स मेरा है तेरी आंखों में
सब्र अब तो यही ज़रा सा है
अश्क रूठे हैं आजकल शायद
आंख सूखी है दिल धुँआ है
बात छूटी थी कल अधूरी जो
राज़ दिल में कहीं छिपा सा है
बह गए बारिशों में पुल सारे
नाखुदा अब तू ही खुदा सा है
फ़र्क सच झूठ का समझ लेगा
दिल भी तो एक आइना सा है