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विजय तिलक - Ankita Bhargava (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

विजय तिलक

  • 330
  • 23 Min Read

विजय तिलक



रिया अपने कमरे में बैठी अलमारी के कपड़े संभाल रही थी। असल तो वह अलमारी के बहाने से अपनी भावनाएं संभालने की कोशिश कर रही थी। परिवारजन भी उसकी मन:स्थिति से अनजान नहीं थे इसलिए उसे कोई परेशान नहीं कर रहा था। वैसे भी घर में हर कोई अपने अपने डर को दिल में दबाए एकदूसरे से आंखें चुराता घूम रहा था। रिया ने सामने टेबल पर रखी शिखर की तस्वीर उठा ली। कैसा सलौना सा रूप था शिखर का, ये लंबा कद, सांवला रंग और उन्नत ललाट और उस पर यह मोहक मुस्कान। कैसा सज रहा था वर्दी में, रिया ने तस्वीर को कस कर सीने से लगा लिया।
बिस्तर पर लेटी रिया की आंखें छत को घूर रही थीं पर उसके दिलो-दिमाग में विचारों की एक आंधी सी चल रही थी। पुरखों से वीरता उनके खून में रही उसके दादाजी सेना में अफसर थे। उसे याद है जब भी दादाजी ड्यूटी पर जाते दादी उनके माथे पर तिलक लगा कर उन्हें विदा करती। उनके दिल में दर्द होता पर वह कभी दादाजी के सामने आंखें नम नहीं होने देतीं। पापा और चाचा भी सेना में अफसर थे। कारगिल के लिए विदा करते समय मां और चाची ने भी पाप और चाचा को तिलक लगा कर विदा किया था। उनके जाने के बाद कई घंटों तक दोनों कमरा बंद किए बैठी रहीं और जब बाहर निकलीं तो दोनों की आंखें सूजी हुई थीं। दादी ने ज्यादा कुछ नहीं कहा बस दोनों बहुओं की पीठ थपथपा कर बोलीं 'हिम्मत ना हारो, आज विदा का तिलक किया है कल विजय तिलक भी तुम ही करोगी।'
भाई ने भी परिवार की परंपरा को आगे बढाते हुए एनडीए ज्वॉइन किया तो खुद रिया भी पीछे ना रह सकी, जिस दिन उसे आर्मी हॉस्पिटल में डॉक्टर के रूप में नियुक्ति मिली उस दिन दादाजी ने गर्व से उसका माथा चूम लिया था। अपनी तीसरी पीढ़ी को परिवार की परंपरा का मान रखते देख उनका दिल गर्व और खुशी से भर गया था। उसके लिए मेजर शिखर को दादाजी ने ही चुना था। शादी के बाद रिया को ससुराल में सामंजस्य बिठाने में ज्यादा समस्या नहीं आई, क्योंकि दोनों घरों का माहौल और रीत रिवाज लगभग एक जैसे ही थे। शिखर के परिवार के अधिकतर लोग भी सेना में ही थे। शादी के बाद सब अच्छा ही चल रहा था, शिखर को पीस पोस्टिंग मिली हुई थी और रिया की पोस्टिंग भी उसी छावनी के आर्मी हॉस्पिटल में थी। शिखर के माता पिता भी उनके साथ ही रहते थे। हंसते खेलते अच्छा समय कब बीत गया पता ही नहीं चला और एक दिन शिखर की फील्ड पोस्टिंग के ऑर्डर आ गए। शादी के बाद यह पहला मौका था जब रिया को शिखर से अलग रहना था और वो भी लंबे समय के लिए। शिखर वर्दी पहने विदा के लिए तैयार खड़े थे और रिया अपलक उन्हें देख रही थी। मां ने रिया के हाथ में पूजा का थाल पकड़ा कर शिखर को तिलक करने को कहा तो रिया ने उस समय तो होठों पर फीकी सी मुस्कान सजाते हुए यंत्रवत सब कर दिया मगर शिखर के जाने के बाद वह खुद को संभाल नहीं पाई और आंसुओं में बह गई। मां ने भी उसकी पीठ थपथपाते हुए दादी की कही बात दोहरा दी। उस दिन उसे अपनी मां के साथ साथ सासूमां और अन्य सैनिकों की पत्नियों की मनोदशा का अंदाज़ा हो रहा था।
शिखर को गए छह महीने हो चले थे इस बीच बस फोन ही उन दोनों मध्य संपर्क सूत्र था। सब थे पास एक शिखर नहीं थे और रिया का दिल हर समय, हर जगह बस उन्हें ही तलाश करता रहता था। इस बीच खबर आई कि पेट्रोलिंग के दौरान शिखर के दल पर आतकंवादियों ने हमला कर दिया है और दोनों और से गोलीबारी हुई मेजर शिखर ने बहुत बहादुरी का परिचय दिया किंतु उन्हें भी कूल्हे में गोली लगी और वो घायल हो गए। रिया का दिल तो जैसे मुट्ठी में आ गया। शिखर की गहरी चोट से बहुत खून बह गया था इसलिए उन्हें आई. सी.यू. में रखा गया था। पुलवामा के बाद वह पहले से ही बहुत डरी हुई थी ऊपर से यह खबर। शिखर और उसके पापा खबर मिलते ही शिखर को देखने निकल गए थे, वह भी उनके साथ शिखर के पास जाना चाहती थी। हॉस्पिटल में वह शिखर की देखभाल करना चाहती थी पर उसे इस समय छुट्टी नहीं मिल पा रही थी। हर क्षण कुशंकाओं से घिरी रिया का दिल घबराता रहता और आंसू बस आंखों से टपकने को तैयार रहते।
रिया! ओ रिया!' मां की तेज़ आवाज सुन रिया चौंक गई और यह सोच कर कि 'जाने क्या खबर सुनने को मिले,' उसका दिल की धड़कन बढ़ गई, उसकी तो हिम्मत ही नहीं हो रही थी दरवाज़ा खोलने की मगर मां को सब्र नहीं था वह फिर से कह उठी, 'दरवाज़ा खोल मेरी बच्ची, ईश्वर ने तेरी सुन ली शिखर अब ठीक है उसे हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई है शिखर के पापा उसे घर ला रहे हैं, आज शाम तक हमारा शिखर हमारे साथ होगा।' मां की आवाज़ में खुशी ही खुशी झलक रही थी और उनकी खुशी ने रिया को भी आल्हादित कर दिया। उसने दौड़ कर दरवाज़ा खोला और मां के गले लग कर रो पड़ी। बहुत दिनों कैद उसके आंसू आज बांध तोड़ कर बह निकले थे। मां ने उसके आंसू पौंछे 'पगली खुशी के समय रोती है। आज तो हम दोनों के लिए खुशी का दिन है बिटिया, आज मेरा बेटा और तेरा पति इंसानियत के दुश्मनों को खत्म करके घर आ रहा है, हां थोड़ा सा घायल है तो क्या हुआ मुझे तुम पर पूरा भरोसा है देखना तुम्हारी सेवा उसे कितनी जल्दी फिर से उसके पैरों पर खड़ा कर देगी। आंसू पौंछ और जा कर अपने हीरो का स्वागत की तैयारी कर।' मां की आज्ञा सुन रिया मुस्कुराते हुए पूजा घर की ओर चल पड़ी आखिर उसे अपने वीर के विजय तिलक के लिए थाल जो सजाना था।

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

बेहतरीन

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत जबरदस्त लिखा है ??

Ankita Bhargava3 years ago

जी शुक्रिया

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

सुंदर सृजन

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

जय हिन्द

Ankita Bhargava3 years ago

आभार सर

Vinay Kumar Gautam

Vinay Kumar Gautam 3 years ago

खूबसूरत लिखा है ?

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया

दादी की परी
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