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आरोही - Ankita Bhargava (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

आरोही

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आरोही

अवनी आंगन में बैठी रंगोली बना रही थी। सालों के बाद उसने रंगों को हाथ लगाया था। जैसे जैसे उसके हाथ चल रहे थे एक खूबसूरत सी रंगोली आंगन में आकार लेती जा रही थी। मोबाइल की घंटी बजी, “हैलो अवनी, क्या हो रहा है?“ मीनाक्षी ने पूछा।
“पूछो मत, धमाल हो रहा है। आरोही की पहली दिवाली है और इस दिवाली को यादगार बनाने के लिए उसके पापा और भाई जाने क्या क्या प्लान बना रहे हैं। मैं तो सुबह से परेशान हो गई हूं।“
“चलो तुम सबको दिवाली मुबारक। कभी आरोही को ले कर आंचल आना, सब बच्चे उसे बहुत याद करते हैं।“
"ठीक है! जल्दी ही उसे ले कर आती हूं।“ अवनी फोन रख कर फिर रंगोली बनाने में व्यस्त हो गई, बरसों के बाद आज वह पूरे रस्मों-रिवाज के साथ दिवाली मनना चाहती थी। आखिर आरोही की पहली दीवाली जो थी। वह मुस्कुरा दी, उसके ज़हन में छह महीने पहले का वो दिन ताज़ हो गया जब वह मीनाक्षी से मिलने उसके पालनाघर आंचल गई थी।
गीता ने जैसे ही आधा लीटर दूध की एक और थैली के लिए हाथ बढाया तो दूध वाला ही नहीं अवनी भी समझ गई कि आंचल में एक दूध मुंहा और आ गया है। अवनी के कदम खुद ब खुद मीनाक्षी के ऑफिस की बजाय हॉल की ओर चल दिए। गीता भी उसके पीछे होली। हॉल में सब बच्चे एक झूले को घेरे खड़े थे। झूले में कुछ घंटों की मासूम कुछ बंद, कुछ खुली पलकों से अपने आसपास के माहौल का जायजा लेने की कोशिश कर रही थी। कल रात को आंचल के अहाते में रखे पालने में कोई उसे छोड़ गया था। तब से गीता ही उसे संभाल रही थी। मीनाक्षी भी वहीं थी। अवनी ने जब उसे सहलाया तो उसने अवनी की उंगली अपनी नन्हीं सी मुट्ठी में थाम ली। उसका यह स्पर्श अवनी के मन ही नहीं आत्मा को भी आंदोलित कर गया। उसने हाथ नहीं छुडा़या और वहीं बैठ कर बच्चों को अपने साथ लाई चॉकलेट व बिस्किट खिलाने लगी।
उस बच्ची का स्पर्श अवनी को अपने घर आने के बाद भी अपने हाथ पर महसूस हो रहा था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कोई मां भी अपने बच्चे को ऐसे लावारिस छोड़ सकती है। उसकी मां कैसे रह पाऐगी उसके बिना। वह तो अपनी बच्ची को खो कर हंसना भी भूल गई थी यदि आरव ना होता तो शायद जी भी ना पाती। मोबाइल की घंटी बजी, राघव का फोन था।
“हैलो“, अवनी ने खुदको संयत करने का प्रयत्न करते हुए फोन उठाया।
“कहां चली गई थी, दिन में कितनी बार फोन किया पर तुमने उठाया ही नहीं।“
“आंचल गई थी मिनाक्षी से मिलने, बातों-बातों में फोन का ध्यान नहीं रहा। आई एम सॉरी!“
“इट्स ओके! मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था।“ राघव ने कोमल स्वर में कहा। “थोड़ी अपसेट लग रही हो, क्या बात है?“
राघव के पूछने पर अवनी ने संक्षेप में सब कुछ कह डाला। राघव कुछ कहता उससे पहले ही आरव ने फोन छीन लिया और फिर उसकी फरमाइशें शुरू हो गईं। अवनी जानती थी अब वह उसे फोन नहीं देगा और उसने जिद भी नहीं की। उसके मन में बहुत कुछ उबल रहा था और वह राघव से बहुत कुछ कहना चाहती थी पर तसल्ली से बैठ कर। और जानती थी यह तो कल उसके टूर से वापस आने के बाद ही संभव था। आरव को खरगोश की तरह उछलकूद करते देख अवनी को फिर उस बच्ची का ख्याल आ गया।
अगले दिन सुबह आरव तो नींद से जगा भी नहीं था जब राघव आया। अवनी उसे देख कर होले से मुस्करा दी। राघव ने जब तक कपड़े बदले वह चाय बना लाई। राघव को चाय दे अवनी उसके पास ही बैठ गई। राघव ने कुछ नहीं कहा बस हल्के से उसका सर सहला दिया, अवनी की लाल आंखें बता रही थीं वह कल रात बहुत देर तक रोई है। अवनी ने राघव के कंधे पर सर रख दिया। कोई कुछ नहीं बोला बस उनके बीच मौन बात करता रहा। "कल संडे है, हम आंचल चलें?" राघव ने पूछा तो अवनी को लगा जैसे उसे मन मांगी मुराद मिल गई।
“क्या हुआ गीता? कौन बीमार है? डाक्टर साहब क्यों आए थे? सब बच्चे ठीक तो हैं ना?“ आंचल के दरवाजे से डाक्टर की गाड़ी बाहर आते देख अवनी घबरा सी गई और उसने गीता पर प्रश्नों की बौछार कर दी।
“हे राम! दीदी सांस तो लेलो, सब ठीक है, बस बच्चों के रूटीन चेकअप के लिए मीनाक्षी दीदी ने डाक्टर साहब को बुलाया था।“ गीता का जवाब सुन अवनी कुछ शांत हुई पर इतने में छुटकी के रोने की आवज़ सुन वह तेज़ कदमों से हॉल की ओर चल दी। वह झूले में लेटी जोर जोर से रोए जा रही थी। अवनी उसके पास गई और झूला हिलाते हुए धीमें स्वर में वही लोरी गाने लगी जो वह आरव के लिए गाया करती थी। लोरी सुन कर बच्ची शांत हो गई। “अरे वाह, कितनी देर से रो रो कर उधम मचाए हुए थी और आपकी लोरी सुनते ही कैसे शांत हो गई।“ गीता ने आश्चर्य से कहां
“अरे तेरी दीदी की आवाज़ है ही इतनी मीठी।“ राघव ने कहा, आरव के साथ वह भी हॉल में आ गया था। उसे देख कर सारे बच्चे खुश हो गए।
“अंकल इस छुटकी का नाम क्या रखेंगे?“ निधी ने पूछा।
“इसका नाम! इसका नाम हम आरोही रखेंगे।“ राघव ने बच्ची को गोद में लिया तो वह उसे देख कर मुस्कुरा दी। उसकी भोली सी मुस्कान पर राघव निहाल हो गया। सब बच्चे उसका नाम सुन कर खुश हो गए। अवनी ने राघव की आंखों में देखा तो वहां बस आरोही के लिए प्यार ही प्यार था।
“वह बच्ची कितनी प्यारी है ना। तुम्हारी गोद में कैसे आराम से खेल रही थी जैसे आरव खेला करता था। पर तुमने उसे आरोही नाम क्यों दिया?“
“क्यों! तुम्हें अच्छा नहीं लगा?“ राघव ने बस इतना ही कहा बाकी सब उसकी आंखों की नमी ने कह दिया, वह भी अपनी बेटी को उतना ही मिस करता था जितना कि अवनी।
“नहीं अच्छा है। पर मुझे उसकी बहुत चिन्ता हो रही है।“ अवनी ने बात बदली, “मीनाक्षी बता रही थी कि वह उस बच्ची को गोद देने की प्रक्रिया शुरू करने वाली है। मैं तो ईश्वर से प्रार्थना कर रही हूं कि उसे कोई अच्छा परिवार मिले जो उसे अपनी बच्ची की तरह पाले।“ अवनी ने राघव की ओर देखा, वह किसी सोच में डूबा हुआ था।
“अवनी! मैं सोच रहा था क्यों ना हम ही आरोही को गोद ले लें?“अचानक राघव ने अवनी से पूछा तो कुछ देर के लिए उससे कोई जवाब देते नहीं बना, वह अवाक सी उसका मुंह ताकती रही। “देखो तुम उसके लिए इतनी चिंतित रहती हो कि उसे कोई अच्छा परिवार मिले, तो हम बनेंगे ना उसका परिवार, मैं उसका पापा, तुम मम्मा और आरव भाई।“
“ठीक है पर आरव उसे एकसेप्ट कर पाएगा?“ अवनी ने शंका जाहिर की।
“हम उसे समझाएंगे। अगर आज हमारी आरोही हमारे साथ होती तब भी तो समझाते ना। अब भी समझा लेंगे।“ राघव ने कहा। अवनी उसकी बातों से सहमत थी, हालांकी आरव को लेकर उसकी शंकाएं अभी तक खत्म नहीं हुईं थी पर वह जानती थी राघव उसे समझा ही लेगा।
अगले कुछ दिनों में आरोही उनके अधूरे परिवार को पूरा करने हमेशा के लिए उनके घर आ गई। हां आरव शुरू में थोड़ा विचलित अवश्य हुआ पर राघव ने सब संभाल लिया। जाने क्या समझाया आरव को कि आरोही उसकी बेस्ट फ्रेंड बन गई। उसके पास बैठ कर वह जहान भर की बातें कर डालता, स्कूल की और अपने दोस्तों की सारी बातें उसे बताता और आरोही भी ऐसे हूं हूं करती जैसे सब समझ आ रहा हो। अवनी राघव को उन दोनों की शरारतें दिखाती तो वह भी मुस्कुरा देता। दीपावली तो आज थी पर अवनी के आंगन में तो खुशियों के दीप उसी दिन जल उठे थे जिस दिन आरोही उनके घर बेटी बन कर आई थी।

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

विलक्षण

Ankita Bhargava3 years ago

आभार सर

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

माँ की ममता होती ऐसी ही होती है..!बच्चों का कोमल स्पर्श..!

Ankita Bhargava3 years ago

शुक्रिया

दादी की परी
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