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कविता
सपने अधूरे बचपन के
क्या हाल बनाया तुम्हारा वसुंधरा
होने को साकार, फिर एक बार ...
वंदना
दोस्ती
जिंदगी के पन्ने
मां ने मुझको जन्म दिया,पर पिता ने मुझको पाला है ।
मोहब्बत का मकां
कवि हो जाना
सफर जारी रखो
तन्हाई
#पुराने धागे (रिश्ते)
करवा चौथ पर पति की व्यथा
अपने सपने
"अपना इंडिया अब भारत बनने लगा"
यह तिरंगा कैनवास
आँसू कलम ने भी बेइंतहा बहाए है
इतना हँसो कि रोने का वक्त ना मिलो
चल खुसरो, घर आपने
प्यार
हैरत नहीं कि अब जान बेहतर है
अनकहा दर्द
मेरी आज़ादी
अहम
पहले के जैसे
गिरकर ही संभलता है इंसान
जूती
बिना स्वार्थ के सारथी बनो
जीवन के रंग अनेक
माँ ...जो मैंने तुम्हें कभी न बताया
साहित्य बने मेरी पहचान
जन्म और मृत्यु
खुद्दार जिंदगानी
साज़िशें बहुत की उसने मुझे ढाने की
मासूम की गुहार
मासूम परिंदे
बताओ ना
पंछी
मैंने पूछा चाँद से
धुंधलापन ------------------------ इस रात के घने अंधेरे में मैं देखना चाहता हूँ चारों ओर इस दुनियाँ का रंग रूप पर कुछ दिखता नहीं पर मन में एक रोशनी सी दिखती है | बस हर तरफ से नजरें हारकर बस उसकी तरफ मुड़ जाती है दिखती है वह दूर से आती हुई पर उस
बूढ़ी मां....
स्नेह
सच छूट गया कहीं
माहिया
दिल कुतरने का हुनर न सीख पाया मैं
तुम्हारा ज़िक्र
मुश्किल हो गया
मैं और वह
यह जिंदगी है
हिंदी है हिन्द की शान
दिल के सांचे में अश्क ढलता है
हिन्दी को दो मान
अन्तः परिचय
नोंक झोंक
काँटों के बीहड़ में खिले गुलाब
क्यों पढ़ूँ अखबार
बदलाव की बयार
तुम
लड़कियों को कमजोर समझने की भूल
बिगड़े हुए लड़के।
इतना हँसें कि रोने का वक्त ना मिले
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
दिल चाहता है
तब मैं लिखता हूँ
दिल चाहता है
जाने ये कैसी है मीडिया
मैं जिंदगो हूँ
उसने कहा
नेता
ये मजदूर नही है, सुनहरे भारत का अभिमान है
भारत के लाल
इंसानियत के नायक
क्या तुम्हें याद है?
ना जाने क्यूँ
चुनावी मुद्दा (हास्य व्यंग)
बचपन हमें जीने दो
कौन बनेगा करोड़पति
मन की वे खेल खिलौने
किरदार
उत्पीड़न
बेटी के नाम
मेरे जज्बात
वो पागल लड़का
मेरे जज्बात-2
मैंने जीवन जीना सीखा है
आज फिर.....
मुझे हारकर जीत जाने दो
ना जाने किस वेश में
मुझे आसमां छूने दो
तुम क्यों शोक मनाते हो?
ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है
तू नहीं प्यार के काबिल
बँटे आज हम जाने क्यूँ
मासूम कलियां
दो मिनट
वो सब किया
अच्छा लगता है
देखकर मुझको थोड़ा सा जो मुस्कराने लगे
ज़िंदगी का मजा
गुरूर तुम पर.....
नवल वधु
दिल का दर्द
चांद
वो तो जान है मेरी ...
अब कोई नही है
आंखो का तारा
मिले खुदसे हुए ज़माना सा लगता है
तुमने मुझे
कफस में कनेरी
तारे जमीन पर
भैया दूज
दीप हैं हम (गीत)
एक जमाना बीत गया
जिन्दगी
तुम मिले
क्या कहें
मैंने सबका कहा माना
छुअन,,,,,,तेरे रूप अनेक
बदला-बदला शहर हो गया
प्रकाश
डर रहा हूं मैं
लौटोगे?
नवल वधु
मुझे उनके आने का पैगाम देना
मुझे याद है
हम तुम
सात फेरे सात वचन
मैंने सबका कहना माना
कुछ पल बैठिए उनके पास
प्रेम एक अहसास
मोल फूलों का
लॉक डाउन में क्या खोया क्या पाया
आज भी पीछा करती हैं
आखिर मेरा क्या कसूर था
बदलाव
एक आग सुलगने भर
किसान
तस्वीर....
मेरा बावरा मन
अलविदा बीस
#अलविदा 2020
अलविदा 2020
2020 तुमने सिखलाया भी है बहुत कुछ
अलविदा ऐ जाने वाले
साथी हाथ बढ़ाना
खुद ही देखिए,
हुक्मरान आए हैं,
सरकार
सब कुछ पाकर भी....
सूरज नहीं बुझने दूंगा
एक पुरानी खिड़की
अपनो के सपने
जो अपने है उनको पराया ना कर
आदमी की मौत मरा कुत्ता
इकरार
मैंने माँ से पूछा
तुम याद आते
जिंदगी
नेताजी
पराक्रम दिवस
तुम याद आते
तुझसे प्यार करने लगी हूँ मै
यह तिरंगा कैनवास
"हमारा हिन्दुस्तान"
एक दीया शहिदों के नाम
एक दीया सेना के नाम
सपने में पापा आए
आम सी ज़िन्दगी
#चित्र प्रतियोगिता (बचपन के वो दिन)
रसगुल्ला
साल भर अपना रिश्ता रहा
खुश है वो देखो कितना..
ना जाने क्यूँ आज अधूरा
पनपी मन में एक अभिलाषा
प्रेम इश्क मोहब्बत
ढलती धूप
ऑनलाइन इश्क *
परिचय
तेरे ना होने से
तेरे ना होने से
सावन गीत
सावन गीत
ना जाने कौन
औकात
ज़माने की नज़र में
तेरी आंखों के पैमाने
बारिश हो रही है
प्यार का मर्म
प्यार का मर्म
एक घने पेड़ की छांव
उस घने पेड़ की छांव
अनार
मन के आईने में
फूल या कांटा
सपने
बदलते शक्ल
ऋतुराज बसंत है आया
अंकुरण
प्रणय मिलन
मेरा गांव मेरा आंगन
डर
दुष्कर ही श्रेयस्कर
अंधेरे का आकर्षण
ओ सनम मेरे सनम
तेरे जाने के बाद।
Khud se Rubru
जीने की ललक
जीने का चाव
जीने की कला
अन्नदाता
चाय के बहाने
चाय के बहाने
मौन स्वीकृति
आरम्भ का अंत
छलकते जज्बात *❤
मैंने तो मांगा है बन्धन पिया
मेरा मन सुमन की तरह खिला दिया
मुझसे प्यार है और नहीं भी
प्रियवर हो
आप मेरी जिंदगी हो
कोई तो खास है
अपनी धारा ,अपना वेग
मन बन वनवासी राम सा
बीते हुए लम्हों में
उसकी हर सौगात को सम्मान दें
प्रेम की गाड़ी चल पड़ी
आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग
तेरे मेरे दरमियां
धूप के आर पार
बवाल....
प्रेम की गाड़ी चल पड़ी
"अब हमें प्रखर रहने दो "
ऐ फूल
दिल ही तो जाने है
आज़ादी के दीवाने
सूर्पनखा की नाककटाई !
यह प्रकृति एक सुंदर पुस्तिका
व्यंग्य
मेहरबां है रब जो उसने हमें मिलाया
कतरा-कतरा, बूँद-बूँद
मैं कुड़ी हरिद्वार की
डिजिटल जनरेशन
तेरा वज़ूद
पिंकू बतख
माँ भारती के गहने
इश्क़
धड़कनें
चल खुसरो घर आपने
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
सबसे पीछे
रात की बात
जिंदगी
ठानी है हमनें
भय की शिला
काँटों के बीहड़ में खिले गुलाब
माँ
स्त्री हूँ मैं अबला नहीं ...
एक नन्ही परी
चेहरे छुपाने पड़ रहे हैं
बीते दिन वापस नहींं आते
बँटे आज हम जाने क्यूँ
एक कड़वे सच के आईने में
हे कृष्ण! कितना आसान है
# बहुत घुटन है
पेड़ बचाओ
नयी हिन्दी ग़ज़ल
नकारात्मक
"पुरानी डायरी के बंद पन्ने"
#तेरे मेरे सपने(प्रतियोगिता हेतु)
# तेरे मेरे सपने (प्रतियोगिता)
तेरे मेरे सपने ❤
सपने मनु शतरूपा के
गुमानी एहसास
बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
बिना पूछे सबकुछ बता देते हैं
ज्ञानी हर एक है
तुम सुनो न सुनो
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
मैं खुद में तुमसे ज्यादा नहीं था कभी
यूँ तकरार बनी मनुहार
"खुशनुमा लम्हे "
दवा देनेवाले ने दर्द और बढ़ा दिया
दोहे
परछाईयाँ अगर बोल सकती
एक अंधाधुंध दौड़ में
मुझे उड़ान भरने दो
मुझे उड़ान भरने दो
" क्षणिका "
उमंग
" अलग-माएने " 💐💐
" चाय पर " 💐💐
मैं तो तो अकेला ही चला था
एक अंधाधुंध दौड़ में
कौन जाने कब कहाँ ......
मैंने पूछा चाँद से
यह जिंदगी है
बप्पा, तुम जल्दी चले गये
स्वरलहरी
झरने प्रीत के
बन फकीरा
मैंने आज बस इतना किया
मुक्तक ..........
चकमक पत्थर
एक धनक
ये हुनर दिखाने का
आसमान के पार
अब में ही सिमटा है
ग़ज़ल
माँ जाने क्या कहती है
मेरा अपना आप
*प्यार अपने आप से कर.....*
"हमसफर "💐💐
मैंने क्या बिगाड़ा था
बहुत कोशिश की मैंने
जरुरी तो नहीं
क्या करूँ, बीच में नेहरू आ गया
जिंदगी की डायरी
पुराने दोस्त याद आएं
उससे मिलने की खुशी मत पूछो
मैंने तो नहीं कहा था
यात्री गण अपने सामान का खुद ध्यान रखें
मैं तो तो अकेला ही चला था
वक्त के इस काफिले में
कल फिर हो ना हो
*कालचक्र*
*कालचक्र*
तुम्हारे सीने में मेरा दिल
ज़हरीला इन्सान
रंग
पापा
अपने सपनो के लिए
आज मैंने एक रोते हुए बच्चे को हँसा दिया
वक्त के इस काफिले में
याद आती हो तुम .....
यात्री गण अपने सामान का खुद ध्यान रखें
पता ही नहीं
गीत... हो रहे हैं लोग
गीत.. मुरझाने से क्यों घबराना
क्या रखा है वक्त गवाने [प्रथम भाग]
खोने का दर्द
ए अजनबी
आओ और सराहा जाये
सफ़र
प्रतीक्षा
हमारा बचपन 🥰🥰
मां
ग़रीब के घर सपने नहीं होते
साथ तिरे सारा ज़माना है
प्यास दरिया की बुझती है समंदर में आकर
घर की बात बशर रखा कर घर मेंअपने
मतलब की बातें करते हैं
सावन के महीने में कोई बड़ी शिद्दत से याद आता है
वक़्त मिलता ही कहाँ है बशर जिंदगी को संवरने के लिए
अंधे रेवड़ी बांटने में लगे
कच्चे घरों को कौन बचाने वाला है
कृपा करें श्रीराम
अनेक सैय्याद एक परिंदा
शाम ए हयात होने को आई
मुफलिसी ने बेनक़ाब कर रखा है
तिश्नालबी बुझती नहीं
बशर ज़ेरे-ए-असर आकर दामने-कोह के सहन में बस गया
दर्द किसानों के वो क्या जाने
शिद्दत और बढ जाती है उनके याद आने की
निकालने को जाए कहाँ ख़ुद का ग़ुबार आदमी
जिंदगी मिली है जीने के लिए
हिज्र-ओ-फ़ुर्क़त में हबीब के कभी बसर करने का इरादा भी नहीं है
ज़रूरी नहीं के हर मुफ़लिस बिकने वाला हो
इक उम्र गुजरी है बशर यहाँ तक आने में
अपने आज की हिफ़ाज़त कर
तसव्वुर में हबीब हमारा देखा
जीने के लिए सारा जग भागे
आजमाइश
अज़ीज़ मुझे समझ न सके अजनबी मग़र समझ गए
हमारा ही हाथ है
किसी सयाने को ना इश्क़ करना आया
काश लूटने कोई हमारे रंजो -मलाल आ जाता
छुपाकर अपने ग़म रखिए
ईश्वर की कृपा
तुमअपने सपने बशर जिस ज़बान में देखो
कुछ कम अपने अहबाब रख
साथ जिस शख़्स के हमेशा तुमने शराफ़त की होती है बशर
कीमतों ने छुआ आसमान
दुआएं उम्र ए दराज़ होने की न मांग
तैयार हैं छोड़नेको घरबार हमतो
मसरूफ़ ओ मश्ग़ूल तो रहने दो
बीते हुए दिन बशर अब अक्सर बेहतर लगने लगते हैं
हवाले किसी के ना अपनी औक़ात कर
हम कितने चैतन्य
बेनाम शहीदों को क्याक्या हुए थे हासिल ईनाम याद हैं
सबा से गुज़र जाओ
सितम हमने बशर क्या क्या न क़ल्ब बेचारे पे किए
किसी को चाहने से पहले ख़ुदको आजमा लेना
असल जिंदगी बशर हर तर्ज़ ओ तक़रीर से परे होती है
कामिल कोई शय नहीं है इधर बशर जमाने की
जख़्म-ए-जिगर को बशर मेरे हरा अभी कुछ रोज रहने दे
हारने को कुछ बचा ही नहीं
बेसबब बोलने का नुकसान मग़र बशर ज़रूर हो जाएगा
बेसबब बोलने का नुकसान मग़र बशर ज़रूर हो जाएगा
नेकदिल इन्सान भी बशर यहाँ गुनहगार हो जाते हैं
मुकम्मल कभी सपने नहीं होते
कमाल तो है मग़र बुलंदियों पर टिके रहने
तहखानों में छुपा रखा है
अहबाब ही रखने लगे अदावत
मजा तो दर्दे-जिगर छिपाने में होता है
चांद पर बसने की बात करते हैं
भूल सकता नहीं अपने मां -बाप को
करने लगे मन-पूरे लोग
जरूरियात भी कम है
तहरीर-ए-मुक़द्दर लिख दी है बशर खुदा ने हमारी पानी पर
उम्रें गुज़र जाती हैं बात दिल की कानों तक आने में
सुकून थोड़ातो अपने लिएभी बचाकर रख बशर
जीवन वह है बशर जो हम ने जिया है
कितने खुदाओं पे यक़ीन करें
चले आए हम सवाली की तरह
आकलन करने को चाहिए सही तंत्र
बे-शुमार मसर्रतें होती हैं मयस्सर जरा-सा मुस्कुराने से
जीने के अहसासात गुजारे हमने गाँवमें अपने
जिन्दगी से हमने हमारा बाक़ी सफ़र पूछा
हंसने के लिए बशर रोनेको तैयार हो जाता है
जीने केलिए बंदा मरने को तैयार हो जाता है
सांझ ढलने दीजिए
बीते हुए वोह जमाने ढूंढ़ कर कहाँ से लाऊँ
यौम-ए-हिंदी मुबारक
बोली भाषा मज़हब की दुहाई देनेके आदी लोग
*साथ बशर अपने ला नहीं सकता*
जमाने गुज़र जाते हैं बशर खुशियों के आने में
*बशर अपने रास्ते बदलता रहा*
अंधेरा रहने दो
*काबिले-बिल-क़स्द बने*
खुद अपना तमाशा मत कर
*तेरे बोलने का असर क्या होगा*
याद का नहीं है असर तो और क्या है
शकुनियों ने फैलाया अफवाहों का धुंध
*अपने तो बस नाम के होते हैं*
प्रेम लाइन
*जीने के हुनर भूल गए *
*हम से ही "बशर" हमारी बात हो गई*
अपने -अपने रस्ते हो लिए
*समझाने लगे हैं लोग *
*हयात ने मारा बशर*
*रस्मे-अदावत निभाई ज़ालिम ने*
कोई अपने मां-बाप से बड़ा नहीं हो सकता
*पहचाने जाने में जमाने लगे हैं*
*क्यूं कोसते हो अपने आज को*
अपने ही घर में थे
*अनसुनी करी नफ़्ज-ए-क़ल्ब हमने*
*मुस्कुराने में क्या जाता है*
प्रेम या दर्द
"संवेदना" [महाकाव्य] से
क़ुदरत ने करिश्माई ताक़त बख़्शी है
आदमी ने ज़हर घोला है
कोरोना महराज
आस उस की मन में विश्वास जगाती है
*संजीदा दिखाई दो*
*जीने की आरज़ू रखे है बशर*
*मिटादो मन-मुटाव जमाने से*
*जीने का तरीक़ा बड़ा आसान है*
यह कैसी दोस्ती की है
दृढ़ आत्मबल की दरकार
*तोलने की ज़रूरत क्या है*
आपका माथा जाएगा घूम
आदमी को आदमी हि रहनेदो
*पीने आ जाया करो*
विरह गीत
*रहबर की क्या सुनेंगे*
*तलब ना कर*
*शराब ने डुबोया है* म
*हम तो अपने इरादे जानें*
*जीने के लिए मरता हूँ मैं*
आखरी मुलाकात
*इसका हमें न पता था*
जीने की हसरत है
तबीब करने लगे शिफ़ा वबा से
रूह तक उतर जाने दो
*जमाने का होता है हाथ फ़ितरत-ए-इन्सा बनाने में*
*अहसासात*
वुजूहात हमारे अंदर जज़्ब होती हैं
रौशनाई के भी अपने उसूल ओ अदब हुआ करते हैं
सच समझने में चूका तंत्र सारा
*हम बच्चे थे*
Nekiya 😍
बच्चे डरने लगे हैं
Ghazal
*सीने में धड़कता क्या है*
रोने लगे मुस्कुराने वाला
"आधुनिक पथभ्रष्ट समाज"
*तू जमाने बग़ैर मुतमईन नहीं है*
अपना ही दिल लगने लगा है सितमगर
अपना ही दिल लगने लगा है सितमगर
*माटी में माटी होने दफ़्न आ गई*
*जिंदा अपने उसूल हैं*
आदमी मैं मरा हुआ हूँ
*गिरने का जिनको खौफ़ नहीं होता*
इजाज़त 🥺
सफ़र से गुजरता हर कोई है
बुलंदी पर बने रहना और बात है
मेहमानों की तरह रहे
किसी और का नसीब क्या जानें
ज़िंदगी की उलझन
मोती लड़ियों में पिरोने लगती है
*शाद रहने की वज़ह ढूंढ लेने का नाम हयात है*
*नज़रें उसने घुमालीं दिल हमारा बैठगया*
*जिंदगी से मिलने को तरस गए*
*आस्मां छूने को बेताब हो गए*
चलते बने लोग बशर खाक डाल कर कब्र पर
बचकर रहने का तरीक़ा है
खुश नज़र आने लगे
रोया मग़र बशर गोया आकर दिसम्बर के महीने में
बनाकर किरदारे-दास्ताँ छोड़ दिया
दर्द की दर्द से शिफा किए बैठे हैं हम
खुदसे सुनना चाहता हूँ
नाम होने का था गुमान मग़र
अपना कातिल 🔪
मतपूछ हमसे कैसे हमने हयात गुजारी हो
जन्नत को भी ला सकता है क़रीब अपने
आदमी खुदा बनने से बाज नहीं आता
मरने से फुरसत न होती
जद अपनी "बशर" अपने दस्तरस में नहीं
*शाद रहने केलिए नाशाद रहता है*
*खुश रहने में भी कुछ जाता है क्या*
खुद खुदा ही जाने उसकी खुदाई
वोह फ़ना हो जाते हैं सचके हकपर खड़े रहने में
किसी और के कब दीवाने हो गए
*मनकी गहराई कौन जाने
ग़म जमानेभर से पाये हमने
हम भी तो देखें दिल उसका अपने सीने में डालकर
मौसमे-बहार को फिर बहाल कर
नुक़ूश-ए-दर्द अपने छोड़ चला
उनको नहीं हमारी ख़बर
हो गई पहचान उसे
पैरों पर खड़ा नहीं होता
आने वाला साल अच्छा हो
नये साल की खुशी न पुराने का ग़म
मेरे सिवा कौन चलता है तेरे साथ
रास्ते सफ़र के बहुत हमने बदल बदल कर देखे
तेरी इक झलक पाने केलिए आतुर
शब्दशिल्पी कोईभी नहीं हो जता
जान में जान आ जाती है
सबने अपने-अपने देखे
सबक जमाने से सीखा था
भवसागर तरने को
मुस्तक़बिल के अपने खुद ही खुदा होंगे हम
मुस्तक़बिल के अपने खुद ही खुदा होंगे हम
कच्चा धागा तोड़ दिया हमने
सैलाब लाने लगे हैं कभी बूंद को तरसाने लगे हैं
अपनाया मैंने 🥰
सुख़न कहने से रह गया
अखबारों में छप जाने से नाम नहीं होता
बहने लगी सर्द सबा
आंखें चुराने की ज़रूरत क्या है
ला-हासिल ही रहता है यादगार में
नसीब ने दिए हमें बेशुमार ग़म
दर्द जिगर में होता है
पूछते आना बशर चैनो-अमन के दाम
बर्फ़ पर घर बसाने लगे हैं
इरादों को मदद नहीं चाहिए तक़दीर की
अच्छाई ने हमको बुराई से सिला दिया
न होने का रोना है
खुदको खाली मत होने देना
राज लिखे जाते हैं
कोशिश जीने की करनी चाहिए
रिश्तों के मरने से पहले
कानों को हो गई है आदत सुनने की आवाज़ उनकी
अलग अपनी पहचान रखते हैं
खुदही बशर खुदके रहबर
जिंदगी क्या है
अनसुलझे शब्द मेरे
नुस्खे बे-हिसाब रखते हैं
जीने से सरोकार छोड़ दिया
मैं ही सैय्याद मैं ही निशाने
प्यास क्या है तिश्नगी क्या है
सपनों का घर
ख़िताब-ए-बाबा-ए-उर्दू
जीना नहीं आया
राज -ए -दिल अपने खोलना नहीं
रूठने से रिश्ते गहरे होते हैं
देखें सपने तेरे
शिद्दत इस क़दर दुआओं ने कर ली
इबादत करने आना
अना दीये को रोशनाई की
किनारों को मिलाने चले हो
हमने मान लिया कि यही सही है
वक़्त को मनाने में जमाने निकले
उम्रे-तमाम इंतज़ार करने को भी हम हैं तैयार
जर्द पत्ते समेटकर आग लगाने को
कहे अश्आर तमाम मग़र अपनेही शिफ़ा-ए-मर्ज़ पर
जिंदगी की आँधी
हबीब ने कमाल किया
कहनेको अश्आर नहीं है
मुक़म्मल कभी सपने हो न सके
खुदही हमने खुदका तमाशा किया
जाने तू कहाँ है माँ
जवानी हमने रूठने मनाने में गुजारी है
शाम रहने दी ना सवेरा रहने दिया
तेरा ही रहने दिया ना मेरा ही रहने दिया
ना पैदा होते हुए पूछा
किसीने नहीं बसर करते हुए पूछा
किसीने नहीं बसर करते हुए पूछा
नहीं बसर करने के लिए किसीने पूछा
आदमियत खोने पर
आसमानों से बाते करने लगे हैं
मरना जीने की आदत से कम नहीं
उतने ग़म न मिले
प्रेम
मैंने हिम्मत बहुत दिखाई है
इरादा अगर हम पर छोड़दो
अपनी नजरों में गिरने का सबब न हो जाए
चेहरों की सिलवटों में हमने पढी हैं
अपने बैठेहैं अपनों से दूर
इतना तो होश है
जख़्मे-जिगर सहलाने केलिए
ख़ैरात-ए-चराग़ क्या दोगे
इधर से गुज़र जाने के बाद
सपने देखा करो
"बशर" खुद को धोका देता है
तुम्हारा येह जमाना नहीं है
सबब चुप रहने का
भुलाने के काबिल हैं
साथ रहने को मकीं घर समझ लेते हैं
जिंदा होने का अहसास हुआ
अपनों को अपना कहने से डर लगता है
सोने वालों की सहर होगी
जाने वजूद हमारा कहाँ होगा
स्कूली एग्जाम
जल्दबाजी कभी नहीं करते हुए देखा
झूमती है कहकशाँ
तरस गए हैं तेरे सुनने को मधु बैन
धड़कने भी दिलमें धड़कनी चाहिए
मकीं अन्जाना
जिंदा रहना है
इतना सा ही तो फ़र्क है
डरने जैसा कुछ भी नहीं है
उनपर ऐतबार नहीं किया जा सकता
अपने आप पर ए'तिमाद ओ एहतराम की इब्तिदा करें!
मंहगी यहाँ जमीनें कमबख़्त हो गई
अपने हमसफ़र भी हम हैं
दिल टूट जाने के बाद
बुज़ुर्ग सयाने गुज़र गए
हल ढूंढने मे मदद दो
बुरे वक़्त में लोगों के काम आता है
जी भरकर हमने जिया ही नहीं
डर क्या डरने से कम हो जाएगा
मर्द के औक़ात की
नारी तुम कमजोर नहीं
~ नाराज़गी मेरे महबूब की
राह-ए-सफ़र मिलने वाले रहबर नहीं हुआ करते
खाने को चाहिए मन भर
अनसुनी सदाएं रह जाती हैं
वफ़ा करने वाला तन्हा क्यूँ है
जीने केलिए जगह नहीं
हरबात जबानी पूछने लगे हैं
गैरों की कहानी पूछने लगे हैं
पीने वालों की कहानी सलामत
हमने बच्चा बनकर रहना चाहा
सेवा अपने मां-बाप की
हमने सबने ही खुदको मारा है
सपना
केशों से तुम कह दो-कविता
भीतर अपने तलाश कर
बन गए किस्से-कहानी अफ़्साने लोग
चाहे जैसे भी हों हालात
सब्र सहने वाले की
सब्र सहने वाले की
फकीरों ने ✨✨
मरनेपे तुला होतो क्या करें
इन्सान की रगों में खून काला बहने लगा है
जीना ना मरना अपने हाथ
ये दौर अलग
कोई अपनों से दूर न रहे
किरदार ऐसा हो कि याद रहे
हद होती है
आईने से डरते हैं
इन्सानियत पर सबका अधिकार होता है
आपको अपनी खूबियाँ मुबारक
खुद को बहलाते रहे
अपना किसीको बनाने में
गुजिश्ता साल.... नज़्म
कुदरत का शाहकार लिए फिरते है
भ्रष्टाचार ने बदल डाला
नींद को आने में देर हो जाती है
प्रेम नियति
लोग अपने ऐब जिंदा रखते हैं
उलझने बढाना कौन चाहता है
आईने में मिलने वाला है
चरागों ने इक़रार किया
दीदार-ए-यार किया
बसर करने का तरीक़ा दे दे
जमाने की राह
है बशर तैयार
रंग लगाकर नहीं गया
बिखरा दिया
मानो जिंदगी मिल गई ,
ख़ुश्बू भी हो तो बात बने
रातों की नींद गंवाई है
जीने केलिए तैयार रहो
हासिले-सुकूने-क़ल्ब
रातों की नींद गंवाई है
सामने वाले का कद छोटा दिखता है
टकरार क्या करना
मेरे दिल में रहने वाले तुम दरार भी नहीं देते
किसी का होकर आने से,तेरा जाना लगा अच्छा
दिन का सुकून,नींद रातों का,गुजार रखा है
मुझमें ही रह के मुझ से फासला भी कमाल का है
घर में एक ही खिड़की होती थी ब्यार आने की
शेर
खुदको समझाने केलिए तैयार रहो
जीने केलिए मरना पड़त है
रामभक्त हनुमान
हिम्मत बुलंद है जहां
जिंदगी क्या चीज़ है मौत से इंसान डरता नहीं
अक्ल-मंद बनकर जियें
ख़राब वक़्त में हमने अकेले ही दिन बिताए
आख़िर डूबना है शबो-शाम होने पर
रहने दे तुझ को पास मेरे
दिल के काशाने में है
दौलत से परखने लगे हैं
सामने इक किताब वही
बंदपड़े अपने घटके पट खोल
जंग जीत सकते हो अपने किरदार से
अपने तेरे तुझको जगाने नहीं आए
तल्ख़ियाँ बढने से पहले
मंज़िल ख़्वाब नज़र आने लगे
आईने पे क्या गुज़री
मज़हब की दीवारों से ऊपर
अब खुदको भी समय कुछ दान करो
इक शे'र
मझधार में लाकर रख दिया
तन्हा भी नहीं रहने देतीं
सही शख़्स ही मानता है
जमाने लगने लगे हैं सहर होने में
जोर आता है निभाने में
दिलमें उतरने वालोंको संभालकर रखिए
पत्थर जमा करते रहे
मुकद्दर को बदलने की ख़्वाहिश रखते हैं
अपनी शेख़ी बघारने वाले लोग
ज़माने ने जैसा समझा वैसा हुआ मैं
वक़्त ए तकलीफ़ नज़र आते हैं
ज़माना सुधर जाएगा
मुसाफ़िर उतर रहा था
शुक्रिया मेरी जिंदगी में आने केलिए
दास्ताने-उल्फ़त मिरी
अपना कहने को जी चाहता है
जीने के लिए मरना पड़ता है
आंखों ने मेरी कोई सपना नहीं देखा
सपने देखना ज़रूरी है
भीतर से कितने रीते हैं हम
समझौता मत करो अपने वक़ार से
सुना नहीं तुमने
यादें जीने की वज़ह बन जाती हैं
तन्हा रहने की आदत डाल लीजिए
अल्फ़ाज ऐसे न निकल पड़े कि वापस लेने पड़े
हासिल सुकूने-क़ल्ब बहुत जहं होता है
दिलके काशाने में हमारे सनम हैं
बंदे हम काम आने वाले हैं
मुझको आंखों में बसाने वाले
जमाने गुज़र जाते हैं तकरार में
अलग अलग ठिकाने हुए
ख़ामुशी ने सब ज़ाहिर कर दिया
जोशो-ख़रोश पाने में नहीं
दिल के काशाने में खुदा रखते हैं
लम्हे जो जी लिए अपने नाम चाहिए
खुशियाँ अपने पास नहीं आती
अपने दिल की आवाज सुनी
मुझे नहीं फ़िक्र कोई हाले-दिल बताने में
जिंदगी बंद द्वार खोलने को तैयार है
खुशियों की दौलत आपस में मिलती हैं
आओ मतदान करें हम।
माँ से बड़ी नेमत नहीं
लम्हे पुराने
उनका क्या करें जो दिल में समाए हैं
उम्र हुई तमाम दर्दे -दिल को समझाने में
जब तलक "बशर" बच्चा था
जनाजे में नहीं आने वाला
मौसमों के मिज़ाज बदलने का मजा लिया कीजिए
बेमानी होने लगता है बारबार सुना गया भी
हसरतों के पगडंडियों पर बढ़ने लगा हूं.....
इस जमाने से विदा लेकर ......
वोभी जाने जो हमसे कहा न जाए
कहानी
कोरे पन्ने
मुझे सुसाइड नहीं करना था
कातिल
चूड़ी
रुकी हुई ज़िंदगी भाग-३
बस नंबर 703 (भाग 1)
"एक बूंद प्यार की बरसात" (भाग-1)
पीतांबर बालम
प्रेम की बूँदे भाग 2
कन्या पूजन दूसरा भाग
सपने
दादी की परी
दादी की परी
नव प्रसूता
कहानी औरत की
कतरनी
बेलजियम की चॉक्लेट...
खलिश
ऊँट कंकड़ के नीचे
"बाबा यहाँ ना छोड़ो मुझे..अपने साथ ले चलो।
मासूम बचपन
अपनी हिन्दी भाषा
मैच्युरिटी
गृहस्थ आश्रम (लघुकथा)
तुच्छ सोच (लघु कथा)
तुच्छ सोच (लघु कथा)
हिंदी दिवस के लिए
अक्ल खूंटी पर
धरती कहे पुकार के
*शीर्षक- नाच न जाने आँगन टेढ़ा*
फर्क मिटाने की तैयारी
मैच्यरिटी
मैच्युरिटी
पेंटिंग की सच्चाई
कालमित्र
चुप्पी
यादें
दोस्ती
अनेकता में एकता
पति परमेश्वर
माँ की सीख
अतीत के घाव
बात जोहता डेरा
ज़मीर
नयी जिन्दगी
अभागे की परिभाषा
समाधान
द स्टोरी ऑफ माई थर्ड बर्थ पार्ट 2
लघुकाथा
घाव
वह घटना
सफ़र ए दास्तान
संस्मरण
पराई बच्चियां
भगवान ने मिलाई कुंडली
प्यार से बढ़कर कुछ नहीं
पहला प्यार
वो कौन थी?
पुरस्कार
सशक्त निर्णय
चाय के बहाने
ज्योतिषी
वह परी
जिन्दगी की डायरी के पन्ने
फिर कब मिलोगे
विछोह
आओ अपने गौरवशाली इतिहास को जाने
" वो नीला स्वेटर "
नामुमकिन कुछ भी नहीं
पुरस्कार
बता, कौन सी कहानी सुनेगा
यायावर की यादें
बड़े भाई साहब
बदला नहीं जा सकता
बदला नहीं जा सकता
बुलबुल
निराली दुनिया
भीड़ में कुछ ऐसे भी
न्याय
ठिठुरन
मिट्टी से तकदीर संवारी
और सूरज निकल आया
यादें
भूतों का मेला
एक और साल...!
हाजी नाजी
और सूरज निकल आया
एक कप काफी और तुम
इरादों मे तासीर
कुछ ख्वाब अधूरे से
प्यार
#इकरार शीर्षक : अपने अपने दायरे
"झूठ का दर्द"
स्वच्छता अभियान
चाँद तेरे रूप अनेक
चाँद तेरे रूप अनेक
एक बूंद ओस की
हसरत की हक़ीक़त
संवेदनहीनता
कारवां गुजर गया
अबे ये तो अंधा है
बसंती सपने
पति पत्नी और खाना
अहम सबूत
अहम सबूत
हसरत की हक़ीक़त
समर्पण
"अपनेपन की खुशबू"
मुस्करातें खिलौने
काजल
काजल
कठपुतली
खुलती गाँठें
वह खत....!!
सही या ग़लत
प्रभु तेरे रूप अनेक
आ घर लौट चलें...
सपने अपने अपने
दोस्ती
अंतर्द्वंद
सोने में सुहागा
एक अजनबी दोस्त
हसरत की हक़ीक़त
:महामारी से मुक्त होने हेतु ईश्वर को पत्र
:महामारी से मुक्त होने हेतु ईश्वर को पत्र
सास बहू
जिम्मेदारी
मौत दिखाती आँखें
जिज्जी भाग - 9
भाग्य
सगी बहनें
छोटु चाय वाला
कच्चे रास्ते (भाग ५) साप्ताहिक धारावाहिक
संक्रमण
" तीन पन्ने "
दादी के सपने
अक्श की सफेद धुंध
"शोहदे"
"संवाद हीनता "
"सरनेम"
"इन्द्रधनुष के रँग "💐💐
नयी जिन्दगी
" कचरे-वाला " 💐💐
" राह अपनी-अपनी " 💐💐
" रंग-बिरंगे अनुभव '💐💐
Naak Kat Jaayegi
" अपना -घर " 💐💐
राखी का नेग
काल की मित्रता
बता, कौन सी कहानी सुनेगा
अनजाने रिश्ते
तीसरा नेत्र
धरती से टिका अंगूठा
अपने घर
" लंगड़ी-कन्या" 💐💐
लाली ने रचाई मेहंदी
बस खट्टा मत होने दो
हाँजी ना जी
किवाड़
" वो कौन है "💐💐
" अभिनेत्री "💐👌🏼
किक ऑफ़ लाइफ
" "नन्ही मिनी की रुमानी दुनिया " 💐💐
"मासूम सवाल "🍁😊
"रामरती चाची " 🍁🍁
' मिलन की बेला ' 🍁🍁
"मिलन की बेला " भाग २ 🍁🍁
" मिलन की बेला " 🍁🍁
"मृग-मारीचिका " 🍁🍁 भाग एक
" मृग-मरीचिका " भाग ... 5 🍁🍁
"मैंने जो कुछ अपने दादाजी से सीखा " 🍁🍁
" गोरा-चिट्टा दूल्हा " 🍁🍁
"बोल्ड ऐन्ड ब्यूटी फुल " 🍁🍁
नकलची चमचे
आप भी याद रखना
और वो एक कम्पनी का “COO” बन गया.
मेरी पहली पदयात्रा
मेरी जिद
और रो पड़ी मां
एक दिन सफलता मेरे सपनें में आई
एक सुप्त स्वप्न की पूर्ति
अजनबी भाषा में भी अपनी सी मुस्कुराहट
लेख
लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय (4)
लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय अंतिम भाग
फेंकवीर जन पावत ताही
झोपड़ी और महल
जानें कहाँ गए वो दिन
नन्हीं जान
इंसानियत
हार जीत
सोने का पिंजरा
भूला नहीं जाता
लोग क्या कहेंगे
हिंदी: विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली अंतरराष्ट्रीय भाषा
दर्द...
यादों के निर्झर
#न्याय...
उम्मीद
सोने का पिंजरा
ताजमहल के कलश का रहस्य
यै शायर नहीं शोषक हैं
ट्रैन के लोकल डिब्बे का एक्सपीरियंस
भाई के ससुराल का पहला नेवता
संस्मरण,,, भूलने की आदत
याद करने का हुनर सीख लिया
" भुलक्कड़पन
" सोने का कड़ा"
खौफ जीवन बचाने का....
कलम की कहानी
नमामि देवी नर्मदे
सुभाषचन्द्र बोस
अपने पापा के नाम एक ख़त
प्रथम परमवीर
वर्क फ्रॉम होम
करारा तमाचा
अब तो कुछ काम करने लगे हैं..
ट्रैकिंग
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बुधु भगत
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विश्व महिला दिवस के बहाने
भारत को ईश्वर नहीं ऐश्वर्य चाहिए
अभाव और मुश्किल ने सदैव बेहतर कल का निर्माण किया है
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पाठक के दिलोदिमाग पर अमिट छाप छोड़ने में सफल है "डियर ज़िंदगी"
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कविवर नरेन्द्र सिंह नीहार का कोरोना कालीन साहित्य:सन्दर्भ एवं विमर्श एक समीक्षा
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एक दूजे के लिए
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"फ़िल्म समीक्षा के बारे में कुछ विचार "
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