कवितालयबद्ध कविता
बेताब है आसमान तुम्हे पाने को।
पँखो को खोल दो जरा इसे अपनाने को।
बड़े बेगैरत है लोग वो जो समझे नही ख्वाहिशें
तुम मन की सुनो जो बेकरार है पंछी बन जाने को।
तोड़ कैद को जंजीरों से आजाद हो जाओ
कि नेहा नही मिलेगी फिर ये सब बताने को।
तुमने पा लिया है सबक जिंदगी का अब
बेताब हैं ये हवाएं अब तुम्हे आजादी दिलाने को। - नेहा शर्मा
Bhut hi sunder rachna mam
thank you so much sir.