कविताअतुकांत कविता
क्या है डर मन के कोने का एक भयावह रूप,
या जलते बदन की अग्नि सी धूप।
या दिल को चीरती कोई नुकीली सी चीज
है कोई सुई सी चुभती आवाज की चूक
अंधेरे में लिपटी कोई काली सी मूरत
चींखती, चिल्लाती या सिमटती सी मूक
नही एक कोने में पनपती बीमारी है ये
नही कोई मन का वहम न कोई जलती धूप
परत है झूठ का बस उखाड़ फेंकने की देर
डर मन का है तन का है डर चिल्ला मत रह चुप
निकाल खुन्नस स्वीकार सच को
मत रह नेहा मत रह तू मूक। - नेहा शर्मा