कहानीहास्य व्यंग्य
सास बहू की प्रेम भरी वार्तालाप कुछ ऐसी।
अच्छा बहु तू जेवर तो पहनती ना है मांग का सिंदूर भी गायब है, सौ बार बोला है, जे सब सुहाग की निशानी होवे है। औरत जभी भली दिखे है जब मांग में सिंदूर सिर के बीच मे से होता हुआ लम्बी सी लकीर खींच जावे है। और हमारे समय में तो बोले थे कि मांग जीत्ति लम्बी भरी होवे है ना सुहाग उतना लम्बा जीवे है। जा जल्दी से भर ले जे मांग।
बहु मांग भरकर
“अब ठीक है मांजी”
सास “हाँ अब चोखो लग री है। अर सुन बहुएं ना सिर पे पल्लू धर के ही सोहनी लागे है। जे पल्लू भी नु धर ले सिर पे”
कुछ दिन बाद
सास “ बहू बिंदी जे बड़ी सी लगा लेती इत्ती छोटी बिंदी तो जे माथे पे ढंग से दिखे भी ना, अर ये का लेगिंग फेगिंग सी पहने घूमे है, सलवार कुर्ता ना है तेरे पे ढंग का”
कुछ और दिन बाद
बहु “माँजी मैंने ये कुर्ता सलवार लिया है आपके बेटे ने दिलाया कैसा लग रहा है”।
सास “ बहु जे बात ठीक ना है, जे सुतने से पहने फिरो जा है, साड़ी ना रही तेरे धोरे, हमारे समय मे तो साड़ी पहने थे। जे बड़े बड़े घूंघट में भी घूमे हम तो, अर ये सूट में तो लोंडी लारियाँ ही बढ़िया लगे। घर की बहुएं तो साड़ी में ही चोखी लागे।
बहु सहेली से फोन पर “ क्या बताऊँ यार खुद को बदलते-बदलते कहाँ पहुंच गई मालूम नही चला अब तो जीवन उस रोबोट के जैसे हो गया है जिसका रिमोट कंट्रोल किसी और के हाथ मे है"।
सास “बहु कित्ति देर फोन पे बतियायेगी। इस बुढेल सास के भी हाल चाल पूछ लें चाय ही पिला दे।”
बहु "आयी माँजी फोन बीच मे ही कट"।-नेहा शर्मा