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रंग लगाकर नहीं गया - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

रंग लगाकर नहीं गया

  • 89
  • 1 Min Read

कहां गया जानेवाला ये बता कर नहीं गया,
वक़्त ए रुख़सत नजरें मिलाकर नहीं गया!

रंगों के त्यौहार पर भी घरपर आकर "बशर",
बिनरंगे ही चलागया रंग लगाकर नहीं गया!

©️ "बशर بشر" 🍁

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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