कहानीलघुकथा
एक सुप्रसिद्ध नृत्यांगना का संगीत से अटूट लगाव इतना कि व्हीलचेयर पर बैठी भी वह गानों की धुन में कहीं अतीत के दिनों में चली जाती ।
जिसके पैर संगीत की धुन पर थिरकते थे, जब वह स्टेज पर उतरती दर्शकों की तालियों की गड़गड़ाहट से ऑडियोटोरियम गूंज उठता। उसकी भाव-भंगिमाएं इतनी आकर्षक होती कि मानों गाने का हर शब्द जीवंत हो उठे। जाने कितने पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी थी ।
आह!!!काल की गति इतनी दुखदायी होगी किसी ने कहाँ सोचा था, जिस दिन उसे अन्तर्राष्ट्रीय नृत्य अकादमी के सबसे बड़े कार्यक्रम में प्रस्तुति देनी थी, जाते हुए कार दुर्घटना हो गयी और काल का चक्र भी उस पर ही चला,वह बच तो गई पर एक टांग पूरी तरह टूट चुकी थी । होश आने पर खुद को स्टेज की जगह अस्पताल में पाया, आंखों से जल धारा बह रही थी ,अब तक उसे मालूम न था कि अब वह कभी मंच पर नहीं परफार्म कर पाएगी । अभी उसकी उम्मीदें नहीं हारी थीं।मगर भाग्य न माना और वह फिर कभी खड़ी न हो सकी । फिर भी उसका नृत्य के प्रति समर्पण अडिग रहा ।बरसों गुज़र गए,पैरों से न सही मगर बैठे-बैठे ही वह नाचेगी, जीतेजी वह नहीं मरेगी ।
आज भी वो ढेरों ट्राफियां और वह बड़ा सा ग्रामोफोन उसके कमरे की शोभा को बढ़ा रहे हैं। समय आगे बढ़ता रहा पर वह अभी भी अपने अतीत को जीती है। हर दिन उस ग्रामोफोन में बजते गाने और उसकी धुन पर थिरकते हाथ मुख मुद्राएं उसे अतीत में ले जाते, अपना ही अक्स सामने उतर आता और एक नवीन प्राण संचार उसमें हो जाते ।।
डॉ यास्मीन अली
हल्द्वानी , उत्तराखंड।