कवितालयबद्ध कविता
कहीं घी के दिये तो कहीं मातम पसरा होता है।
ज़िंदगी में कौन किसका अपना सगा होता है।
एक जगह लड्डू खुशी के बंटते तो एक में आंसू की झलक होती है।
जिंदगी और मौत की कभी आपस में कहाँ बनती है।
माँ के गर्भ में जो 9 महीने की तड़प होती है।
मृत्यु के आखिरी पड़ाव में भी तो वैसी ही झलक होती है
बनकर बच्चा जिन हाथों में खेलता है तू
अंत समय में किन्ही हाथों से सेवा होती है।
शब्द उच्चारण भले ही अलग अलग हो जिंदगी और मौत के
एक के स्वागत में खुशी और एक के स्वागत में आंसुओं की लड़ी होती है।
परवाह नही होती उनको जो बैरागी हो जाते है।
मृत्यु उनकी दासी और जन्म एक पहेली होती है। - नेहा शर्मा