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भूतों का मेला - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकसस्पेंस और थ्रिलर

भूतों का मेला

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अजानपुर में अमावस्या की रात भूतों का मेला लगता है।कहते हैं भूत नृत्य करते हैं। यह जिले का लिटपिटी गांव है। लोगों का विश्वास है कि पिछले 150 साल से यहां आत्माएं इकट्ठा होकर नाचती हैं।
आज अमावस्या है।निशीथ ने अपने दोस्तों को कहा कि वह सच्चाई का पता लगा कर रहेगा। उसके दोस्तों ने उसे आगाह किया कि इन भूतों को नाचते देखने वाले जिंदा नहीं रहते।उसी गांव के तीन लोग इस सच की तह तक जाने की फिराक में मौत के शिकार हो चुके हैं।
मगर निशीथ हठ का पक्का था।दोपहर बाद वह चल निकला।वह जानता था ग्रामीण इलाका है। रास्ते में जंगल भी पार करना है।कुछ जरूरी सामान और टोर्च उसने रख ली। जंगल पार करते- करते घना अंधेरा हो गया।अब तक तो उसे पैरों के निशान देखकर इत्मीनान था कि वहां से लोग आते- जाते रहते हैं और वह सुनसान इलाका नहीं है।अब आगे बढ़ने में बहुत संभल- संभल कर पांव रखने पड़ रहे थे।कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।निशीथ डरपोक नहीं था, किंतु रात का सन्नाटा और सन्नाटे को चीरती हुई कुछ लोगों की आवाजों और फिर एक बच्चे के रोने की आवाज से वह क्षण भर के लिए जहां खड़ा था वहीं जडवत खड़ा रह गया।फिर एक खामोशी और आसपास की आहट न पाकर उसने फिर चलना शुरू किया।टॉर्च की रोशनी करना भी खतरनाक हो सकता था।सावधानी से वह पास के एक पेड़ पर चढ़ गया। थोड़ी देर आंखें अंधेरे की अभ्यस्त हुईं। उसने टॉर्च की रोशनी में जो पाया, उससे उसके होशो- हवास उड़ गए। वहां काफी लोग मौजूद थे, उनमें औरतें भी थीं।और वहां थी शराब बनाने की देसी फैक्ट्री। अलाव जल रहे थे। बड़ी भट्टी पर देसी शराब तैयार हो रही थी। आसपास हथियारबंद कई नवयुवक घेरा बनाकर पड़े थे।
ओह, तो यह था भूतों का मेला, जिस मेले को देखने के बाद कोई जीवित नहीं लौटता! उसने रात वहीं बिताने का फैसला किया। अपने आप को पेड़ से सुरक्षित बांध लिया।भोर होते ही वह पास की पुलिस चौकी पहुंचा। पुलिस ने पहुंचकर असली भूतों को गिरफ्तार किया और उस रात के बाद मेला लगने की नौबत नहीं आई।
गीता परिहार
अयोध्या

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दादी की परी
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