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सुभाषचन्द्र बोस - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

लेखआलेख

सुभाषचन्द्र बोस

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सुभाष चंद्र बोस


आज से १२५ वर्ष पूर्व आज ही के दिन भारत देश की महान धरती पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसी महान विभूति ने जन्म लिया था।
भारत वर्ष का इतिहास अनेक महान विभूतियों से विभूषित है। उनमें सुभाष चंद्र बोस का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित है।सुभाषचन्द्र बोस बहुत लोकप्रिय थे।लोग स्नेह व श्रद्धा से उन्हें नेताजी पुकारते थे।

नेता जी का जन्म उड़ीसा प्रांत के कटक नगर में 23 जनवरी 1987 को हिन्दू कायस्थ परिवार में हुआ था।
उनके पिताजी जानकीनाथ बोस और माताजी प्रभावतीदेवी थीं। उनके पिता जाने -माने वकील थे। उन्होंने कटक की महापालिका में लम्बे समय तक काम किया था और वे बंगाल विधानसभा के सदस्य भी रहे थे। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें रायबहादुर का खिताब दिया था। प्रभावती देवी के पिता का नाम गंगानारायण दत्त था।दत्त परिवार को कोलकाता का एक कुलीन परिवार माना जाता था।सुभाष अपने 14 भाई-बहनों में नौवें स्थान पर और पाँचवें बेटे थे।उन्हें अपने सभी भाइयों में शरद चन्द्र से अधिक लगाव था।सुभाष उन्हें मेजदा कहते थे।
सुभाषचन्द्र बोस की प्रारंभिक शिक्षा- दीक्षा कटक के प्रोटेस्टेण्ट स्कूल में हुई।वे बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि थे। कोलकात्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से बी ए किया, जहां कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान रहा।बी ए के बाद वे लंदन चले गए और आईसीएस परीक्षा उत्तीर्ण की। किंतु अंग्रेजों के अधीनस्थ काम करने की बजाय वह स्वदेश लौट आए। यहां उन्होंने देशबंधु चितरंजन दास के साथ जनकल्याण के कार्यों में योगदान देना शुरू किया।
1933-36 तक वे यूरोप मे रहकर राजनीति का गहन अध्ययन करते रहे।1937 में उन्होंने अपनी सेक्रेटरी ,एमिली से विवाह कर लिया। जिनसे उनकी अनीता नाम की पुत्री हुईं।
सन् 1938में उन्होंने राष्ट्रीय योजना का गठन किया ,
जिसका गांधीजी ने खुलकर विरोध किया।गांधीजी नरम दल के नेता थे और सुभाषचन्द्र बोस गर्म दल के।वैचारिक मतभेद को लेकर उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी।
अंग्रेजी हुकूमत का विरोध करने पर उन्हें अनेकों बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने साइमन कमीशन विरोध आंदोलन का नेतृत्व किया, फलस्वरूप उन्हे 4जुलाई 1944 को बर्मा जेल में भेज दिया गया।द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने जापान के सहयोग से आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया। उन्होंने," जय हिन्द" का नारा दिया,जो भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया।
"तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा" और"दिल्ली चलो" के नारों ने देशभक्त, कर्मठ बलिदानी युवाओं को उनके संगठन में एकत्र होने को प्रेरित किया।महिला शक्ति का सम्मान करते हुए उन्होंने "झांसी की रानी" शंरेजिमेंट बनाई।

कहते हैं 18अगस्त 1945 को हवाई दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। किंतु उनकी मौत के रहस्य से आज भी पर्दा उठना बाकी है। आज से 125 वर्ष पूर्व मां भारती ने अपना सपूत सदा के लिए खो दिया।

उनके 125वें जन्मदिवस पर उन्हें शत् शत् नमन।

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