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बीते हुए लम्हों में - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

बीते हुए लम्हों में

  • 280
  • 4 Min Read

कहाँ याद कर पाते हैं
उन भूले बिसरे दिनों को
शैतानियों से भरी अटखेलियों को
मां के दुलार को
सुबह के आलस को
बैठे बैठे, जहां दिन गुज़ारते थे
उस आंगन को
भाई बहनों के संग हंसते खेलते
और फिर लड़ जाने को
दूसरे के खिलौनों पर अड़ जाने को
पिता से डर डर के
अपनी ख्वाहिश बताने को
कहां याद कर पाते हैं

वो तो दूर जा चूकी है
धीरे धीरे भुला दी गई हैं

क्योंकि बदलते दौर के
बदलते मौसम में
बदलती इस दुनिया में
नई नई चिंताओं में
चुप रहने की आदतों में
भागम भाग सी ज़िन्दगी में
लम्बी लम्बी छलांगों में
कहीं पीछे छोड़ चुके है
अपने अच्छे बुरे एहसासों को

पर वे यादें अभी भी वहीं ठहरी हैं
बीते हुए लम्हों में
बस फर्क इतना है
कि जिन यादों को छूकर
जहां से गुज़रा करते थे
अब उस राह पर चलना भूल गए हैं
इसलिये उन यादों को
अब कहाँ याद कर पाते हैं।

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 3 years ago

बहुत खूब

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया आपका

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

बहुत सुन्दर..!

शिवम राव मणि3 years ago

धन्यवाद सर

Meeta Joshi

Meeta Joshi 3 years ago

सच है!बचपन की यादें कभी भुलाए नहीं जाती।

शिवम राव मणि3 years ago

बिल्कुल, शुक्रिया

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

अद्भुत

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया

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