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उत्पीड़न - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

उत्पीड़न

  • 202
  • 6 Min Read

मैंने वक्त की दीवारों से कुछ पूछा है,
के अतीत के दरमियान क्या क्या रखा है।
आज कटघरे मे उस घर की बात है
जिसके हर ईंट पर कसीदा लिखा है।।

मैंने कहा-

आज इन चार दीवारी से बात करनी है
इनके आसरे दबी आवाज सुननी है
कि देखते हो कितना कुछ मगर फिर भी कमाल है
खड़े हो ज्यों के त्यों
ना कोई लचक, ना कोई सवाल है
ऐसा लगता है कि ये दीवारें सब कुछ छुपाती है
लेकिन कुछ आवाजें घर घर चींख जाती है

इतना सुन दीवारें कहती है-

बिल्कुल,
उस घर का दृश्य ऐसा है कि मानो तबाही हुई हो
एक के बाद एक जैसे गवाही हुई हो
कोई अपना बल दिखता स्वाभिमान पर
अभिमान भीग जाता है टूटते आशियान पर
वो जालिम मुँह दबोचते, हाथ उठाते
बाहों को मरोड़ते और कुछ कुछ कह जाते
वो सभी जुर्म करते रहे मेरे सामने
सोचता हूँ आवाजें दबा लूँ किसी और बहाने
लेकिन किसी की वेदना छुपे छुपायी नहीं जाती
कोई पूछे तो बदहाली बतायी नही जाती
कभी कभार देखा है
वो छुप छुपकर कहती जो अन्तर्वेदना है
यकीन नही होता
जो रहती हो ऐसे सामने मुख सलोना है
हाँ, सुनते तो है सभी लेकिन कौन खटखटाने जाए
सबकी अपनी जिंदगी है, सब अपनी चौखट बचाए
लेकिन मिल जाता है
कभी कोई सहयोगी मददगार जैसा
पर इतना भी काफी नही………
जब उत्पीड़न हो बारंबार जैसा

शिवम राव मणि

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

निःशब्द कर दिया

शिवम राव मणि3 years ago

शुक्रिया सर

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

आपकी अब तक की पोस्ट सभी रचनाओं में सर्वोत्तम कृती

शिवम राव मणि3 years ago

जी सही कहा, शुक्रिया आपका

Poonam Bagadia

Poonam Bagadia 3 years ago

उत्तम सृजन

शिवम राव मणि3 years ago

धन्यवाद आपका

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