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यादों के झरोखे से ,,,,,यायावर गोपाल खन्ना द्वारा लिखित.
सन 2017 का मई महीना था ,,मैं नेशनल हिमालयन ट्रेकिंग एक्सपेडिशन '' चन्द्रखानी पास '' ,,में को- डायरेक्टर था ।इसका बेस कैम्प कुलु, मनाली के बीच पतली कुहल नामक स्थान पर सड़क किनारे बनाया गया था।इस अभियान में रोज 50 प्रतिभगियों का दल अभियान पर रवाना होता था।जून के आखीर तक इसमें 2000 लोगों को भाग लेना था।
प्रता 8 बजे हमारा दल जब आठ दिनों के लिए अभियान पर जाता तो हम लोग उसको झंडी दिखा कर विदा करते।ऐसे ही एक दिन मैंने देखा एक बूढ़ा हिमाचली ब्यक्ति कुछ दूर पर खड़ा ट्रेकिंग पर काम आने वाली छड़ी बेच रहा है।वह एक खास पेड़ की सीधी टहनियों को उनकी छाल उतार कर साफ और चिकनी करके काम लायक बनाता था।इन्हें वह 30 रुपये की बेचता था।
क्यो की वह हमारे कैम्प के गेट से दूर खड़ा होता था इसलिए उस पर कम लोगो की दृष्टि ही जाती थी और केवल4,5 छड़ी ही उसकी बिक पाती थीं।
जाहिर था प्रतिभागियों को आगे कहीं पर इतनी अच्छी छड़ी ढूढ़ेसे भी नहीं मिलनी थी।जबकि करीब 80 प्रतिशत लोग छड़ी लेकर ट्रेक करना पसंद करते हैं।
जब ग्रुप विदा हो गया तो मैंने उस छड़ी बेचने वाले से कहा ,चाचा आप इतनी दूर क्यो खड़े होते हो यहां गेट के पास खड़े हो तो आपकी छड़ी ज्यादा बिकेंगी।, ,उसने कहा, साहब यहाँ पर मुझे कोई खड़ा नहीं होने देता,
मैंने पूछा तुमको किसने मना किया,।तो उसने कहा साब पिछले साल जो साहब थे उन्होंने मना किया था।मैंने उससे कहा तुम यहीं रोज गेट पर खड़े हो कर बेचा करो ,कोई अब मना करे तो मुझे बताना।
अगले दिन से वह गेट पर खड़ा हो कर अपनी छड़ी बेचने लगा।अब उसकी 25,30 छड़ी रोज बिकने लगी।उसके साथ ही प्रतिभागी भी इतनी बढ़िया छड़ी पा कर प्रसन्न हो जाते।
मैं करीब एक महीना रहने के बाद जिस दिन वापिस आ रहा था कैम्प के सभी लोग मुझे विदाई देने आए हुए थे।जब मैं दिल्ली वाली वॉल्वो बस पर बैठने लगा तो वह छड़ी बेचने वाले चाचा दौड़ते हुए मेरे पास आये और मुझे एक थैला देकर बोले साब इसमें मेरे बाग के थोड़े से फल हैं ये बच्चो के लिये लेते जाहिए।मैंने चाचा को सीने से लगा लिया।वह रोते हुये बोले साहब आपकी मेहरवानी से अबकी इतने पैसे बच गये है कि चंडीगढ़ जा कर घरवाली का इलाज करवा लूंगा।
मैंने अपने प्रोग्राम अफसर से कहा( जो पेड इम्प्लाई है), चाचा को अगली बार भी मना मत करना, ध्यान रखना।उसने कहा जरूर सर्।
एक महीने तक जिन लोगो के चौबीस घण्टे साथ रहे उनसे और कुल्लू मनाली की मन भावन वादियों से विछुड़ने के गम ने मेरी आँखों को भी बरसने का अवसर दे दिया।बस का ऑटोमेटिक गेट सु की आवाज के साथ बन्द हो गया।चाचा के आँसू और तेज हो गये।
उसके बाद से मेरा मनाली जाना नहीं हों पाया है।पर 2019 में मुझे छड़ी वाले चाचा का पत्र मिला था जो उन्होंने बेस कैंप से मेरा पता प्राप्त कर लिखा था ।तमाम प्यार भरे शब्दो के साथ एक लाइन आखिर में लिखी थी साब कोई नया अफसर आ गया है उसने मुझे गेट के पास से फिर भगा दिया है। साब आप क्या आएंगे इस बार!!
यायावर गोपाल खन्ना
1, 6, 2020