Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
जमाने लगने लगे हैं सहर होने में - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

जमाने लगने लगे हैं सहर होने में

  • 54
  • 1 Min Read

नींद आती नहीं है खौफ़ खाने लगे हैं हम तो अब सोने में
कई जमाने लगने लगे हैं "बशर" आज- कल सहर होने में
© 'बशर' بشر.

01_1714259391.jpg
user-image
चालाकचतुर बावलागेला आदमी
1663984935016_1738474951.jpg
वक़्त बुरा लगना अब शुरू हो गया
1663935559293_1741149820.jpg
मुझ से मुझ तक का फासला ना मुझसे तय हुआ
20220906_194217_1731986379.jpg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg