कविताअतुकांत कविता
जिंदगी के पन्ने
मेरी जिंदगी एक डायरी है
डायरी में पन्ने चार
जन्म लिया तो जीना है अब
डर काहे का यार
पहला पन्ना बचपन था
जो बेफिक्री में बीता
न कोई तब दुश्मन था
न थी कोई चिंता
दुजा पन्ना खोला तब
आई मेरी जवानी
तब न थी कोई दुविधा
प्रेम में बीती कहानी
तीजा पन्ना उस पड़ाव का
जब दिखानी थी समझदारी
सुख दुःख थे अब धूप छाँव
निभानी थी बस जिम्मेदारी
चौथा पन्ना आना है बाकी
बुढ़ापे की झुर्रियाँ निशानी
बैठ पलंग पर समय बिताना
बन जाऊंगी तब मैं नानी
चारों पन्ने भर जायेंगे
तब होगी खत्म कहानी
नाति नातिन जिक्र करेंगे
होती थी एक नानी
एमके कागदाना©
फतेहाबाद हरियाणा