लेखसमीक्षा
पाठकीय समीक्षा..'' ये अनजाने '' लेखक शंकर(मणि शंकर मुखर्जी)
बंगला लेखक '' मणिशंकर मुखर्जी '' (शंकर), मेरे बहुत प्रिय लेखक हैं. मैंने उनकी पुस्तक '' ये अनजाने '' (कतो अजानारे '') अपने कालेज के दिनों में, लाइब्रेरी से, लाकर पढ़ी थी. बाद में कई बार खरीद कर पढी, उनके लेखन की मानवीय संवेदनशीलता ने मुझे। हमेशा बहुत आकर्षित किया. तबसे असंख्य बार मैंने उनकी कई पुस्तकें पढ़ीं हैं. उनमें से कुछ बहुत प्रसिद्ध हैं. जिनमें 'चौरंगी' 'और' 'सीमाबद्ध' ' शामिल हैं... और उनपर बंग्ला में फिल्में भी बनी हैं..'' शंकर '' *87 वर्ष के हैं, वे कलकत्ता के शेरिफ भी रहे हैं.
शंकर द्वारा रचित इस मूल बंगला उपन्यास की प्रष्ठभूमि स्वतन्त्रता पूर्व का समय है.
उन्हें अन्तिम अंग्रेज़ बैरिस्टर ' नोएल फ्रेडरिक बारवेल ' महोदय के साथ स्टेनो के रूप में काम करने का सुअवसर मिला.उनहोंने पुस्तक भी नोएल फ्रेडरिक बारवेल की पवित्र स्मृति को समर्पित की है.. कलकत्ता के पोस्ट आफिस स्ट्रीट के समीप स्थित कलकत्ता हाईकोर्ट में शंकर का परिचय वहां की ' कानूनी दुनिया' के, बहुत से अनजान, व्यथित चेहरों से हुआ.. अंग्रेज साहब ने भी किशोर वय के '' शंकर '' से भारतीय संस्कृति के अनेक व्यक्तित्वों के बारे में जाना.
ख्याति प्राप्त कलकत्ता हाईकोर्ट के विशाल परिसर में अनगिनत अनजाने चेहरे , कभी-कभी सुदूर देशों के पीड़ित अपनी किसी न किसी व्यथा के कानूनी निवारण के लिए वहाँ पर आते. विख्यात बैरिस्टरों और सरकारी वकीलों के अन्तर्मन की व्यथा-कथा .यह पुस्तक समेटे हुए है. संगीन, म्रत्युदंड के आरोपित, उनके भाग्य का फैसला, जूरी व्यवस्था, पूरी संवेदनशीलता के साथ पुस्तक में वर्णित है.
'' अंग्रेज बैरिस्टर साहब '' को '' कच और गुरु कन्या, देवयानी '' की कथा भी आकर्षित करती है.
उपन्यास के एक पात्र, सफल और नामी बैरिस्टर '' सुव्रत राय '' जिन्होंने अपने आरम्भिक जीवन में घोर असफलताएं देखीं, लेकिन सफलता के साथ ही उनका पूरा व्यक्तित्व ही '' कानून '' के संसार में डूब जाता है. उनके गुरु रेमपिन साहब ने हिदायत दी थी.. '' सुव्रत, इस लाइन में सफलता के लिए, बहुत कुछ याद रखना पड़ता है. साथ ही जो अनावश्यक है, उसे स्म्रतिपटल से मिटा देने की कला का भी अभ्यास आवश्यक है.. ''
सुव्रत की पत्नी दीपाली '' कलकत्ते के बेथून कालेज की
अच्छी लड़की है,शुरू के संघर्ष के दिनों में जब थके कदमों से, निराश होकर, वह दिन ढले घर लौटता, नरम हांथों से वह अपने बैरिस्टर पति का कोट उतारती, तसल्ली देती, अभी तो प्रैक्टिस शुरू की है..! धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा, अभी से भीड़ लग जाएगी क्या '! ' सुव्रत और दीपाली के मधुर सम्वाद.. ''
क्रती बैरिस्टर सुब्रत राय को आज हंसी आती है, रूपये? हां रूपये बहुत हैं, लेकिन वे दिन हवा हो गये, आज सुब्रत के दिमाग में सिर्फ प्लेंट, रिटेन स्टेटमेंट, स्पेशल बेंच, फुल बेंच, केस ला के अलावा और कुछ भी नहीं घुसता, दीपाली आज भी '' बैंड '' खोल देती है, लेकिन लड़कियां पिता के पास भी नहीं फटकतीं. दीपाली भी आज बहुत दूर की दीपाली जान पड़ती है - बिल्कुल गम्भीर सी - निर्लिप्त सी..
सुव्रत के गुरु विलमट डेनियल रेमपिन .. उनके गुरु सर हेनरी लांग..
सुव्रत का सारा व्यक्तित्व. कानूनी सत्ता के भार तले दबा हुआ है.. . सुव्रत कोर्ट से लौट कर ब्रीफ के पन्नों पर लाल पेन्सिल से निशान लगाता, दीपाली पास आ बैठती, जीवन में पहली बार सुव्रत को दीपाली की मोहमयी उपस्थिति भी अच्छी नहीं लगी.लेकिन वह समझ जाता है इनके प्राणवान चांचल्य की तिल तिल करके हत्या तो मैंने ही की है..!
. ऎसे अनेक व्यक्तित्वों से पाठकों का परिचय होता है..
लेडी टाइपिस्ट हेलेन ग्रूबर्ट.., श्रीमती सुनन्दा.., फैनी ट्राइटन.. और झोलपुर के सुदर्शन व्यक्तित्व के युवराज.. जगतजननी रहस्यमयी माता काली की मूर्ति.. का मिस ट्राइटन पर प्रभाव..
आरति राय की कहानी.. जिसे साहब अत्याचारी पति के चंगुल से बचाने में दिन रात एक कर देते हैं..
गोल्ड वंश के जेम्स फ्रेडरिक गोल्ड की कथा.. डा शेफाली मित्र और उनकी गोद ली, मुंहबोली बेटी जहाँआरा.. का प्रसंग उसके अभिभावकत्व का मुकदमा जिसे शंकर के बैरिस्टर '' साहब ', जी जान से लड़ कर जिताते हैं.. जगदीश बाबू और उनके साहब मिस्टर राय., जो संगीन अपराध खून, डकैती, के मुकदमें लड़ते हैं. क्रिमिनल कोर्ट के दृश्य., जूरी के निर्णय.
. ग्रीस का नाविक निकोलस ड्रालस जिसके साथ उसकी जहाज़ी कम्पनी अन्याय करती है.. शंकर के बैरिस्टर साहब मानवीयता के अवतार के रूप में, उसका केस भी जी जान से बिना किसी फीस के लड़ते हैं...ऎसे बहुत से पात्र हैं. और उनके संघर्ष हैं.
शंकर के वर्णन अद्वितीय हैं.. भाषा बहुत सौम्य और आकर्षक है.. बंगला के साहित्य जगत में शरत् दा, विमल मित्र और बहुत से बड़े बड़े नाम हैं लेकिन शंकर का लेखन मुझे बहुत प्रिय है और हमेशा आकर्षित करता रहा है..
कमलेश वाजपेयी
ग्रेटर नोएडा