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प्रथम परमवीर
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में 31जनवरी 1923 में जन्मे सोमनाथ शर्मा ने 1942 में रॉयल मिलिट्री कॉलेज से स्नातक किया। पिता, दोनों भाई, दोनों बहने आर्मी में थे। खून में ही वीरता थी तो सोमनाथ शर्मा भी सेना में शामिल हो गए।ब्रिटिश इंडियन आर्मी में रहते हुए उन्होंने बर्मा में दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया। उनका फौजी कार्यकाल शुरू से ही विश्व युद्ध के दौरान हुआ। पहले ही दौर में उन्होंने अपने पराक्रम के तेवर दिखाए और एक विशिष्ट सैनिक के रूप में पहचाने जाने लगे।
बंटवारे के बाद 22 अक्टूबर 1947 को जब पाकिस्तान ने जम्मू कश्मीर पर आक्रमण किया तब हॉकी खेलते हुए बांया हाथ टूट जाने की वजह से मेजर सोमनाथ शर्मा इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती थे। उन्हें जब पता चला कि उनकी बटालियन युद्ध के लिए कश्मीर जा रही है तो उन्होंने उसका हिस्सा बनने की जिद शुरू कर दी। उनकी जिद के आगे सीनियर अधिकारियों को भी मानना पड़ा। मेजर सोमनाथ शर्मा कुमाऊँ रेजीमेंट की चौथी बटालियन की डेल्टा कंपनी कमांडर थे।3 नवंबर 1947 को बड़गांव में सेना की तीन कंपनियां तैनात की गई। उन्हें उत्तर की तरफ से बढ़ने वाले पाकिस्तानी सैनिकों को श्रीनगर पहुंचने से रोकना था। करीब 700 आतंकियों और पाकिस्तानी सैनिकों की एक टुकड़ी बडगाम की तरफ बढ़ी। मेजर सोमनाथ शर्मा की कंपनी तीन तरफ से दुश्मनों से गिर गई।एक हाथ पर प्लास्टर चढ़े होने के बावजूद वे तीन सैन्य टुकड़ियों के हमले का संचालन संभाल रहे थे।मेजर सोमनाथ शर्मा खुद भाग- भागकर सैनिकों के बीच हथियार और गोला-बारूद की सप्लाई कर रहे थे। एक लाइट मशीन गन उन्होंने अपने हाथ में थाम रखी थी।
इसी दौरान आतंकियों का एक मोर्टार शेल गोला बारूद के जखीरे पर गिरा। इसमें मेजर सोमनाथ शर्मा वीरगति को प्राप्त हुए। शहीद होने से पहले उन्होंने अपने हेडक्वार्टर को संदेश भेजा था कि दुश्मन हमसे सिर्फ 50 गज की दूरी पर है।हमारी संख्या काफी कम है। हम भयानक हमले की जद में हैं लेकिन हमने 1 इंच जमीन नहीं छोड़ी है। हम अपने आखिरी सैनिक और आखिरी सांस तक लड़ेंगे। 3 दिन बाद मिले उनके शव की पहचान उनके पिस्टल के होल्डर और सीने से चिपकी श्रीमद्भगवत गीता से हुई।
मरणोपरांत उन्हें परमवीर चक्र प्रदान किया गया। उन्हीं से इस सम्मान की शुरूआत हुई।
गीता परिहार
अयोध्या।