लेखआलेख
एक दिन का किस्सा है। लक्ष्मण स्वरूप शर्मा एक मरीज को देखकर दूसरे गाँव से अपने गाँव जाने के लिये एक बड़ी नदी को पार करके दूसरे किनारे पर आए। पास में ही नल था वह अपना थैला जिसमें दवाइयां एवम उनकी जांच की कुछ चीज़ें थी उसे रख पानी पीने चले गए। वापस आने पर जैसे ही उन्होंने अपना थैला उठाया उन्हें वह काफी भारी लगा। उन्होंने वह थैला डरकर नीचे रख दिया............ जैसे ही उन्होंने थैला नीचे रखा उसमें से बहुत मोटा साँप बाहर निकल आया। बहुत देर तक लक्ष्मण स्वरूप जी उस थैले को देखते रहे और फिर उसे उठाकर गाँव लौट आये। कुछ समय पश्चात शीशों देवी भी चल बसी, जिस दिन उनका निधन हुआ उसी दिन घर में रखे गहने चोरी हो गए। जैसे कोई विपदा सिर पर आन पड़ी हो। परन्तु नानाजी ने हार नही मानी एवम सतत अपने समाजसेवी कार्यों एवम डॉक्टरी के कार्य में लगे रहे। विद्या देवी एवम लक्ष्मण स्वरूप शर्मा की 8 संतान थी। जिनके नाम इस प्रकार हैं। उनके 5 बेटे एवम 3 बेटियां थी। ओमबीर, सुरेश, राकेश, महेश, आदेश पांच बेटे हैं। ओमबति, तुलसा, एवम कमलेश तीन बेटियाँ हैं। सबसे बड़ा बेटा ओमबीर रिटायर डॉक्टर है। सुरेश कौशिक पेशे से पुरातत्व विभाग में अधिकारी हैं। इन्होंने अपने मामा रामधन के सम्मान हेतु राजस्थान के राजा अरुण जी से भी प्रार्थना की। रामधन जी का हॉर्मोनियन एवम संगीत यंत्र वहाँ के म्यूजियम में आज भी रखे हुए है। लक्ष्मण स्वरूप शर्मा ने न जाने कितने ही लोगों के रोगों को दूर कर उनके शारीरिक कष्टों को हर लिया बल्कि समाज सेवा कर न जाने कितने गरीबों के बच्चों की शादियाँ करवाकर एवम दान दक्षिणा कर उनके घर में रोशनी फैलाई। वह कहा करते थे। रोगी तन से नही इंसान मन से होता है। देह है तो कष्ट आनी जानी चीज़ है। बच्चों और परिवार से उनका मोह अथाह था। उनके नाती पोते पड़ पोते सभी से उनका अथाह लगाव था। उनके जैसा पिता बाबा नाना भाई शायद ही कोई इस धरती पर फिर से जन्म ले। और एक दिन वह पुण्य आत्मा महान धनी व्यक्तित्त्व का व्यक्ति 4 सितम्बर 2018 को सदा के लिये विलीन हो गया इस ब्रह्मांड में। अपने भरे पूरे परिवार बेटियों बहुओं पड़ पोते पोतियों, धेवतियों पड़ धेवतियों पड़ देवतों को छोड़कर वो इस निर्मोही संसार को छोड़कर चले गए। उनके निधन से कुछ दिन पूर्व उनका बेटा उनको बाहर आँगन में लाकर बैठाता ही है की तभी फिर से एक बार घर की छत गिर पड़ती है। और सब कुछ धुलमय हो जाता है। शायद यह उनके लिये अंतिम इशारा था उनके अंतिम समय का। कहा जाता है कि शारीरिक तौर पर कमजोर होते हुए भी उन्होंने दुनिया छोड़ने से कुछ दिन पहले तक भी मरीजों की सेवा करना ही उचित समझा। उन्होंने अपने जीवन में शायद ही कभी आराम किया हो। और आज वह सदा के लिये गहन आराम में जा चुके हैं। उनकी कमी हमेशा इस परिवार में बनी रहेगी। उनके स्वर्गवास का भव्य आयोजन रखा गया जिसमें 170 गाँव के लोग सम्मिलित थे। उनकी पुण्यतिथि पर समस्त लोग शोकग्रस्त थे। क्योंकि किसी के लिये वह शायद साधारण से इंसान थे परन्तु बहुत लोगों के लिये वह अन्नदाता एवम जीवनरक्षक थे जो कहीं विलीन होगये दूर आकाश में जो कभी लौटकर नही आ सकेंगे। - नेहा शर्मा