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"जान"
कविता
कवि हो जाना
मेरे घर भी आ जाना
यह तिरंगा कैनवास
व्याकुल मन
हैरत नहीं कि अब जान बेहतर है
क्या जानती हो
तुम्हारे आंगन की तुलसी हो जाना चाहती हूँ
मैंने पूछा चाँद से
तुम्हारा ज़िक्र
मैं और वह
हिन्दी को दो मान
सजाएं हर दिवसवार
सब याद रखा जाएगा
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
स्वयं को जानो
अधूरी दास्तान
जाने ये कैसी है मीडिया
मैं जिंदगो हूँ
ना जाने क्यूँ
किरदार
मेरे जज्बात-2
मुझे हारकर जीत जाने दो
ना जाने किस वेश में
तुम क्यों शोक मनाते हो?
ना जाने नारी कब किस रूप में ढल जाती है
बँटे आज हम जाने क्यूँ
मासूम कलियां
बच्चे मन के सच्चे
बच्चे मन के सच्चे
दिल का दर्द
दौरे जिंदगी
वो तो जान है मेरी ...
अब कोई नही है
अवधान
मिले खुदसे हुए ज़माना सा लगता है
तारे जमीन पर
गोवर्धन
एक जमाना बीत गया
डर रहा हूं मैं
जहां तक उम्मीद है
प्रेम एक अहसास
आज भी पीछा करती हैं
वो अनजान है।
मेरा बावरा मन
बेटी की पाँती पापा को
अलविदा ऐ जाने वाले
भूल ना जाना
साथी हाथ बढ़ाना
सब कुछ पाकर भी....
मेरे चांद
एक पुरानी खिड़की
जान बैठे हैं
वो अजनबी
तुम याद आते
यह तिरंगा कैनवास
बचपन -एक जमाना
कहाँ गए वो बचपन के दिन
बचपन -एक जमाना
साल भर अपना रिश्ता रहा
ना जाने क्यूँ आज अधूरा
ना जाने कौन
दूर है
वो लड़की*
फूल या कांटा
कौन हो तुम
अंजान पथ
ग़ज़ल-इश्क़ की हद जानता है
"रिमझिम सावन की बूंदे..."
ओ सनम मेरे सनम
तेरे जाने के बाद।
तारीफ
Mera bharam
अन्नदाता
छलकते जज्बात *❤
दूर ना जाना
कोई तो खास है
नारी कोमल है, कमज़ोर नहीं
मन बन वनवासी राम सा
बीते हुए लम्हों में
उसकी हर सौगात को सम्मान दें
आजकल पल पल रंग बदल रहे हैं लोग
तेरे मेरे दरमियां
ऐ फूल
दिल ही तो जाने है
✍️अनजान चेहरा सा हैं, मुस्कुहाट सी निजदिकिया हैं,
मैं कुड़ी हरिद्वार की
डिजिटल जनरेशन
सन्नाटे में तैरता सा कोलाहल
सबसे पीछे
कोरोना बोलो तुम्हे कब है जाना
भय की शिला
माँ
बीते दिन वापस नहींं आते
बँटे आज हम जाने क्यूँ
मैं एक तितली अंजानी सी
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
न जाने कहाँ ले जाती ये नइया
एक अंधाधुंध दौड़ में
मेरे घर आना जिंदगी
मैं तो तो अकेला ही चला था
एक अंधाधुंध दौड़ में
मैं कौन हूँ
कौन जाने कब कहाँ ......
मैंने पूछा चाँद से
बप्पा, तुम जल्दी चले गये
थपकी
घनी है रात
माँ जाने क्या कहती है
मेरा अपना आप
"हमसफर "💐💐
लौ का अंत
शब्द जानते हैं
जरुरी तो नहीं
कहीं खो जाना है
पुराने दोस्त याद आएं
उससे मिलने की खुशी मत पूछो
मैं तो तो अकेला ही चला था
वक्त के इस काफिले में
मेरे घर आना जिंदगी
कल फिर हो ना हो
मिट्टी की तरह
वक्त के इस काफिले में
मैं ज़िन्दा हूं, बेजान हूं।
हमारा बचपन 🥰🥰
मां
तुम क्या जानो तुम मेरे लिए क्या हो।
मतलब की बातें करते हैं
साहिल से अनजान रहा
बशर सब -कुछ जान लेता है
दर्द किसानों के वो क्या जाने
खाली हाथ जाना है
अज़ीज़ मुझे समझ न सके अजनबी मग़र समझ गए
जान है तो जहान है
इन चरागों को तो बशर बुझ ही जाना था
आकर देख कभी क़रीब मेरे
दुआ में हाथ हमारे उठ गए
कुछ विचार
*इन्सान का बस आना जाना रहता है*
*पहचाने जाने में जमाने लगे हैं*
कुछ विचार
प्रेम या दर्द
सबका अपना ज़माना होता है
पनघट पे
विरह गीत
*हम तो अपने इरादे जानें*
अनुसंधान
कृष्णानुराग
रूह तक उतर जाने दो
"आधुनिक पथभ्रष्ट समाज"
मेहमानों की तरह रहे
किसी और का नसीब क्या जानें
दूर है तेरा घर अभी
खुद खुदा ही जाने उसकी खुदाई
*मनकी गहराई कौन जाने
हैं औरभी मुख़्तलिफ जानवर-जात दुनिया के जंगल में हर किस्म के मग़र आदमजात के बदरंग किरदार का सूरत-ए-हाल ही और है
आदमजात के किरदार का सूरत-ए-हाल और है
हयात-ए-मुस्त'आर की सदाक़त जानले
वस्ल-मुलाक़ात के तहज़ीब को न भूल जाना
जान में जान आ जाती है
अखबारों में छप जाने से नाम नहीं होता
मुतमईन हो जाना होगा आसान
जिंदगी की आँधी
जाने तू कहाँ है माँ
आदमियत खोने पर
इधर से गुज़र जाने के बाद
तुम्हारा येह जमाना नहीं है
जाने वजूद हमारा कहाँ होगा
स्कूली एग्जाम
जानवर आदमी से प्यार करता है
मकीं अन्जाना
जिंदा रहना है
दिल टूट जाने के बाद
मिट्टी का मिट्टी में मिल जाना ना समझे
और बात
~ नाराज़गी मेरे महबूब की
माहे रमजान की दिली मुबारकबाद
तुम बन जाना मेरी होली
जिंदा ख्वाहिशों से जिंदगी की कहानी है
हम हैं कि मानते नहीं
वह शख्स अनजाना सा
रंग लगाकर नहीं गया
किसी का होकर आने से,तेरा जाना लगा अच्छा
जब रखवाला ही जुआरी था
अब खुदको भी समय कुछ दान करो
पत्थर जमा करते रहे
खुदको जाना बना कलंदर है
मुसाफ़िर उतर रहा था
जीने के लिए मरना पड़ता है
खुदको धोखा देना आसान है
मैं कुछभी नहीं जानता
जब तलक "बशर" बच्चा था
वोभी जाने जो हमसे कहा न जाए
कहानी
बस नंबर 703 (भाग 1)
बस नंबर 703 (अंतिम भाग)
कतरनी
अनजान चेहरे
मैच्युरिटी
तुच्छ सोच (लघु कथा)
तुच्छ सोच (लघु कथा)
*शीर्षक- नाच न जाने आँगन टेढ़ा*
पेंटिंग की सच्चाई
बात जोहता डेरा
घाव
आओ अपने गौरवशाली इतिहास को जाने
अनोखा उपहार
एक और साल...!
संवेदनहीनता
आखिरी मुलाक़ात
पापों का हर्जाना
जिज्जी भाग - 9
अक्श की सफेद धुंध
गजानन के यादों का शहर 💐💐
" राह अपनी-अपनी " 💐💐
अनजाने रिश्ते
तिरङगा हमारी जान
" लंगड़ी-कन्या" 💐💐
उषा की लाली
पापों का हर्जाना
" "नन्ही मिनी की रुमानी दुनिया " 💐💐
"रामरती चाची " 🍁🍁
लेख
लक्ष्मण स्वरूप शर्मा जीवन परिचय अंतिम भाग
जानें कहाँ गए वो दिन
नन्हीं जान
हार जीत
हिंदी: विश्व की सर्वाधिक बोली जाने वाली अंतरराष्ट्रीय भाषा
आया है मुझे फिर याद वो जालिम
ये अनजाने
कारवाँ गुज़र गया
" बैलगाड़ी की यात्रा"
बेस्ट इंग्लिश लर्निंग एप्लिकेशन के विषय में जानिये
पता है
साडी़ बिच नारी है कि....
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