कविताअन्य
धीरे धीरे ये जग महक दे
में इतना मानूं, ये जाने कौन ?
फिर बार बार कोई खेरियत रंग दे
कई रंगों से, ये कौन रंग दे
ना जाने कौन?
चुपके से कोई दस्तक दे
मौसम को बदले, हवाओं में बहे
छुपकर भी कोई आवाज़ दे
दिल कहे के रूह जवाब दे,
कभी मुड़कर झांके तो किसे किसे
भी ये नज़रें पहचाने कौन?
समझाने कभी कोई नज़दीक आये
क्या क्या कहे, क्या जाने कौन?
धीरे धीरे ये जग महका दे,
मैं इतना मानूं, ये जाने कौन?