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घाव - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

घाव

  • 151
  • 28 Min Read

मां  ,सोचो मत ,10,000 रुपए महीना और रोटी,कपड़ा रहना मुफ्त!बस दो एक साल में हम अपना कर्ज चुका देंगे ।यहां हाड़ तोड़ मेहनत के बाद भी हम फाकाकशी ही करते हैं। अपना हाल देखा है ? बाबू के रहते कितनी अच्छी देह थी,धीरे - धीरे एकदम ही गल गई है।
मासूम ने मां का चेहरा अपनी ओर घुमा कर उसका माथा चूमते हुए कहा।
 खुद वह एक चपटे नाक - नक्शे की मगर गठे बदन की  सांवली सी लड़की है।
मां, मैं कौन सा वहां हमेशा रहना चाहती हूं।मेरा मन तो तुम्हारे पास रहेगा।
मेरी प्यारी मां ,तुम्हारे अलावा मेरा और है ही कौन ?मेरी अच्छी मां,ज्यादा सोचो मत,बस  जाने की लिए हां कर दो। धुलिया चाचा पर तो तुम्हे विश्वास है न,वो देखभाल करके ही आए होंगे।फिर मोबाइल तो है ही उससे मैं तुमसे बात भी  करती रहूंगी।
मासूम केवल नाम से ही नहीं, सचमुच मासूम थी। मां की फिक्र को नहीं समझ सकती थी।उम्र ही कितनी थी 14 साल!
कहां आसाम,कहां दिल्ली!
!नहीं ,नहीं जात्री अपनी बेटी को उतनी दूर नहीं भेज सकती। दूसरे दिन धूलिया सुबह - सुबह आ पहुंचा उसने जात्री से कहा ,8 बजे की बस  है। मासूम को जल्दी से रवाना करो।
  हां,हर महीने  मैं खुद अपने हाथ से ₹10,000 लाकर तुम्हे सौंपा करूंगा। तुम इसकी बिल्कुल फिक्र ना करना ।मैं हूं ना ।मैं कितनी लड़कियों को यहां से लेकर गया और सब कमा रही हैं।अपना घर भर रही हैं।

 भरे मन से  जात्री ने बेटी को विदा किया ।मासूम को बताया गया था कि एक छोटा परिवार है पति - पत्नी और दो बच्चे।उसे घर की देखभाल करनी है और खाना बनाना है, बस इतना ही।बहुत खुशी और उल्लास से वह धूलिया चाचा के साथ निकली।सोचती थी खूब मन लगा के काम करूंगी,किसी किस्म की कोताही नहीं करूंगी।सब को खुश रखूंगी।
 मगर वहां जाकर उसने देखा कि वहां छोटा परिवार नहीं ,बल्कि उस परिवार की फैक्ट्री , जिसमें 15 मजदूर काम करते हैं ,उनका भी खाना बनाना, बर्तन करना सब का जिम्मा मासूम को ही  उठाना था।

 14 साल की मासूम सुबह 4 बजे ही झकझोर कर उठा दी जाती।आंखे मलती हुई वह नाश्ते की तैयारी में जुट जाती। 6 बजते - बजते सभी को चाय  देनी होती।8 बजे तक नाश्ता करवा कर बर्तन धुलने लगती ।झाड़ू,पोछा,कपड़े धोना। दोपहर का खाना 2 बजे तक तैयार करना होता।
अगर जरा सा दम लेने की कोशिश करती तो कामचोर, आलसी,सुस्त और न जाने कौन  - कौन से ताने सुनती।उसके अपने खाने का तो कोई वक़्त ही नहीं होता,बस ऐसे ही कुछ निगल लेती।
जब कभी काम करते - करते थक  कर सुस्ताने बैठती  या सो जाती ,या कुछ नुकसान हो जाता तो बुरी तरह  पिटती ।
कुछ ही दिनों में हंसती - खेलती मासूम की हंसी गायब हो चुकी थी और चेहरा पीला पड़ गया था।  महीना पूरा हुआ ,उसने  मैडम से कहा," मैडम,मां को पैसा भेजना था।"
हां, हां, भेज दिया है  "
मैडम धूलिया चाचा तो आए नहीं, कैसे भेजा? मैडम,मां से बात करा दीजिए।" 
चल,चल अभी ये कपड़े इस्त्री कर,बाद में करवा देंगे "
जब जब मासूम मां से बात करने की मांग करती उसे टाल दिया जाता।अब मासूम को कुछ डर लगने लगा था।वह घर जाने की जिद्द करने लगी।
,"मैडम,मुझे घर जाना है,मुझे मां की बहुत याद आती है। "
   रो रो कर ,वह घर वापस जाने की जिद करने लगी।
 "देख रोज - रोज यह मां की रट लगाएगी तो हाथ - पैर बांध कर , कमरे में बंद कर देंगे और खाना भी नहीं देंगे। चुपचाप काम कर।जब फुर्सत होगी,तब देखेंगे।"
 "मगर मैडम,आप मेरी मां से बात ही करवा दो,नहीं तो मैं कोई काम नहीं करूंगी "।
"अच्छा,तो यह बात है !" मैडम आग बबूला हो गईं।उसकी जम कर पिटाई की ,फिर हाथ -पांव बांधकर एक कमरे में बंद कर दिया।दिन भर भूखा रखा।
  भूख से व्याकुल होकर उसने मैडम से माफी मांगी कहा,"मैडम गलती हो गई ,अब से मैं आपकी सब बात मानूगी। "तब जाकर उसके हाथ  खोलेे ।
जब - जब वह घर जाने की जिद करती ,फिर वही अत्याचार दोहराया जाता।
इधर एक महीना बीतने को आया  तो जात्री धूलिया के घर पहुंची।धूलिया  घर पर नहीं  था।उसकी औरत ने कहा, "बाहर गए हैं, फोन किया था, बता रहे थे,फिक्र की कोई बात नहीं है ,मासूम मजे में है।"
जब दूसरा महीना भी बीतने को आया तो वह फिर धूलिया के घर पहुंची।इस बार उसने कहा , "मेरी बात मासूम से करवाओ।"
धूलिया डपट कर बोला, "वो बड़े लोग हैं, उनके यहां जब तब कोई फोन नहीं कर सकता"और उसने 5000 रूपये उसकी ओर बढ़ाए ।
 बोला, "बाकी एक दो रोज में आ जाएंगे। "
जात्री को अब उस पर यकीन नहीं रह गया था। वह पुलिस थाने पहुंची ,मगर वह तो केवल इतना जानती थी कि उसकी बेटी दिल्ली गई है।इसके अलावा वह कुछ नहीं जानती थी।
 मासूम से उसका मोबाइल आते ही छीन लिया गया था ।वह मां से बात भी नहीं कर सकती थी।एक दिन वह मालकिन से गिड़गिड़ा कर बोली," मेहरबानी करके मुझे मां से बात करने दें,"।तभी जनखू,फैक्ट्री का एक कारिंदा वहां किसी काम से आ पहुंचा ,उसने सुना मालकिन गुस्से से बिफर पड़ी थी। 
जनखू को भांपते देर न लगी कि दाल में कुछ काला है। एक दिन जब मालकिन कहीं गई हुई थी तो वह ऊपर आया , मासूम को मोबाइल देते हुए बोला, "जल्दी से बात कर लो।"
 मासूम  की आंखों में आसूं आ गए।वह कभी मोबाइल को,कभी जनखू को देख रही थी। जनखू ने ही उसे राह दिखते हुए पूछा," किसी रिश्तेदार का फोन नंबर जानती हो तो तुरंत मिलाओ,नहीं तो100 नंबर पुलिस का है,मिलाओ।"
मासूम ने 100 नंबर मिलाया ।उसने पुलिस को बताया कि वह किस तरह यहां  फंस गई है ।अगर उसे तुरंत रिहा  नहीं कराया गया तो  ये लोग उसकी जान भी ले सकते हैं।
  बिना समय गवाएं पुलिस ने फ्लैट पर छापा मारा किन्तु उन्हें मासूम बरामद नहीं हुई ,पुलिस लौट गयी।कई दिन मासूम की दबी -दबी चीखें फैक्ट्री की दीवारों से टकराकर जनखू को बेचैन कर रही थीं।
  इस बार जनखू पुलिस  स्टेशन गया ,उसकी सूचना पर पहुंची पुलिस को मासूम बाथरूम में बंद मिली।
 उसके मुंह में कपड़ा ठूंसा हुआ था ।उसके हाथ और पांव रस्सी से बंधे हुए  थे । उसके सारे शरीर पर चोट के निशान थे। उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया गया। वह अर्ध विक्षिप्त सी थी ।न जाने कितने दिनों से उसे खाना नहीं मिला था।
  भोले-भाले लोग अनभिज्ञ होते हैं, वे बेरहम, धोखेबाज और चालबाज लोगों के चंगुल में फंस जाते हैं। उनकी गरीबी , उनकी अज्ञानता उन्हें कष्ट और
 मुश्किल में डाल देती है। वे अपने जीवन में दो रोटी के लिए न जाने कितने जोखिम उठाते हैं ।
आज मासूम को अस्पताल से छुट्टी मिल गई है । उसके मालिक और मालकिन को सजा हो गई है। उसकी बकाया तनख्वाह उसे दे दी गई है। विभिन्न धाराओं के अंतर्गत अब मालिक और मालकिन पर मुकदमा चलेगा।
 लेकिन जो घाव उस मासूम के दिल पर लगे हैं , उनका क्या ? क्या वह सहज अब किसी पर भरोसा कर पाएगी ?

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Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 3 years ago

मर्मस्पर्शी रचना..! समाज के एक कुत्सित रूप को उजागर करते..!

Gita Parihar3 years ago

जी, धन्यवाद

दादी की परी
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