कवितागीत
राग जौनपुरी
बिरहन की गति कोउ ना जाने ।
जा पे बीते सो पहिचाने ।
विरहन की गति कोउ न जाने ।
पिय विन स्वांँस स्वांँस है भारी ।
छट पट तड़पे विरह की मारी ॥
नैना विरह व्यथा मे साने ,
विरहन की गति को ना जाने ।।
पिहू पिहू पपिहा मन बोले ,
विरहन व्याकुल बन बन डोले ।
लता बेल निरखत अकुलाने ,
विरहन की गति कोउ ना जाने ।।
जकि पांँव ना फटी बेमाईं ।
ते का जाने पीर पराई ॥
सौतन पे बलमा बेलमाने ।
विरहन की गति कोउ ना जाने ।।
हालत ऐसी दी बिनु बाती ।
सूखी देंह जरत दिन राती ॥
बैरी बदरा पुनि घहराने ।
विरहन की गति विरहन जाने ।।
रज्जन कहत काहु नहिं ब्यापै ,
विरह ब्यथा तन थर थर काँपे ।
का बरसा जब कृषि सुखाने ।
विरहन की गति विरहन जाने ।
शब्द रचना रज्जन सरल
सतना म०प्र०