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कतरनी - Manpreet Makhija (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिक

कतरनी

  • 207
  • 11 Min Read

#दैनिक लेखन कार्यक्रम
#चित्र आधारित रचना
विधा- लघुकथा
शीर्षक- कतरनी
दिनांक - 28अगस्त2020

"तुम सुन भी रहे हो कि नही!!! भानू!!हम तुमसे कुछ पूछ रहे है,क्यूँ किया तुमने ऐसा?"

आज मेरे घर के बगल वाले फ्लैट से पहली बार उस बच्चे के माँ बाप की आवाज सुनाई दे रही है। वरना तो , फुसफुसाहट भी शर्मा जाए इतनी शांति पसरी रहती है उस घर मे। न जाने छोटा सा बच्चा भी इतना अनुशासित और शांत कैसे रहता है! बड़ा प्यारा बच्चा है लेकिन डाँट क्यूँ खा रहा है! मैंने दबे पाँव फ्लैट के बाहर खड़े होकर सब सुनना शुरू किया। बात तो बड़ी बुरी है जो मैं कर रही थी लेकिन उस बच्चे को डाँट क्यूँ पड़ रही है, ये मैं जानना चाहती थी।

"ओह तो भानू नाम है इस बच्चे का।" मैंने देखा है कई बार भानू को। जब कभी उनके फ्लैट का दरवाजा झाड़ू पोछे के लिए खुलता था तब वो बच्चा.. सात साल का भानू दिन भर घर मे आया के साथ होता मगर कोई कमी तो उसे भी खलती जब बालकनी में खड़ा भानू सामने के फ्लैट के बच्चों को अपने मम्मी पापा संग खेलते देखता।सारा दिन दरवाजे पर आँखों को टिकाए अपने कामकाजी मम्मा और पापा का इंतजार में कलरबूक में कलर करता रहता। आज इंतजार में थक चुकी आँखों ने शायद एक झपकी लेते हुए न जाने कब और कैसे हॉल की दीवार पर कलर कर दिया। बस उसी नासमझी के लिए भानू को उसके मम्मा पापा डाँट रहे है।

"इतना महँगा पेंट करवाया था सारा बिगाड़ कर रख दिया है तुमने। जानते भी हो, मम्मा पापा कितनी मेहनत से पैसा कमा रहे है। तुम्हे तो बस अपनी शरारतों की पड़ी है। उस दिन भी तुमने किचन में मेरी लाओपला की क्रोकरी बिगाड़ दी।तुम चुपचाप बैठकर टीवी क्यूँ नही देख सकते!"
"वेट रीटा, ये ऐसे नही समझेगा। इसके सारे टॉयज़ और ये कलर ले जाकर स्टोर रूम में लॉक कर दो। चार दिन में अपने आप अक्ल ठिकाने आ जायेगी।"

बस अब मुझसे और वहाँ खड़ा नही हुआ जा रहा था। अब मैं और नही सुन सकती थी।कहाँ तो हमारे बचपन मे हम दीवार पर कोयले से आड़ी तिरछी शक्लें बनाते जिसे उस वक़्त के माँ बाप सहज स्वीकार कर लेते और पीठ थपथपा कर कहते, "जियो बेटा.. खुलकर बचपन जियो।"
और आज के ये कामकाजी माँ बाप, उफ़्फ़ कितने सख्त होते जा रहे है। न जाने पैसों के पीछे भागने वाले लोगो की भावनाओं को समय ने काट दिया है जो अपने ही मासूम के पंख कतरने चले है ये। भानू की सजा निश्चित कर दी गई।कभी गिना तो नही मैंने लेकिन न जाने क्यूँ मुझे लगा जैसे आकाश में एक पंछी कम उड़ रहा है आज।

©®मनप्रीत मखीजा

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

आधुनिक अभिभावक

Kamlesh  Vajpeyi

Kamlesh Vajpeyi 4 years ago

बच्चे के साथ बहुत अमानवीय व्यवहार.. जब किप्यार से बच्चे की स्रजनात्मक प्रतिभा को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है.

Manpreet Makhija4 years ago

जी ,

नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 4 years ago

bahut sundar sandedhprad kahani

Manpreet Makhija4 years ago

धन्यवाद जी

दादी की परी
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