Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
जहां तक उम्मीद है - शिवम राव मणि (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

जहां तक उम्मीद है

  • 226
  • 5 Min Read

जहां तक उम्मीद है,
मुझे वहां तक जाना है।

रोजमर्रा की आपाधापी से
बोझिल हो चुकी,
मन की संवेदना भी
जहां गुम हो जाए,
उस नितांत गुप्त अंधेरे में
एक बुझी आस का दिया जला कर
सामने कहीं दूर,
दिप्त होती खुली किताब की ओर
आड़े टेढ़े, अकल्पनीय
जीवन अंश पर चलते हुए
उस इंकलाब तक जाना है,
जिसकी तलाश में,
हर सुख-दुख के लम्हें
मन की अथाह सुरंग में कहीं खो हो गए हैं।

वहां पहुंचकर
उसे छूकर
उसके एक एक पन्ने पलट कर
कुछ भूली बिसरी यादों को
फिर याद करना है
और कुछ छुट रहे लम्हों के दरमियान
जज्बातों की स्याही से
अपने हाल को बयां करना है।

मगर यह इतना भी आसान नहीं;
क्योंकि उस नितांत अंधेरे में
भले ही वह किताब
और उसे ढूंढ रही एक आस
मन की अथाह सुरंग को
रोशन कर रहे हो,
लेकिन सामने,
आड़े टेढ़े,
अज़ीज़ बे- अज़ीज़
एहसासों से भरे हुए
जीवन अंश पर चलना
किसी समर में उतरने जैसा होगा;
जिसका अनुभव,
चाहें अच्छा हो या बुरा,
बस उसे स्वीकारते हुए
उस खुली किताब की ओर
चलते जाना है, चलते जाना है
जहां तक उम्मीद है,
मुझे वहां तक जाना है।
शिवम राव मणि

IMG_20201202_212041_772_1606925367.JPG
user-image
Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

चैतन्यपूर्ण

शिवम राव मणि3 years ago

धन्यवाद आपका

प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
तन्हाई
logo.jpeg