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कवितालयबद्ध कविता
जान बैठे हैं, हाँ , जान बैठे हैं अब हर कड़ियां, और तल्ख़ियां जान बैठे हैं कि गिरकर अब नीचे ऊपर देखा नहीं जाता आंखों में दर्द है पलकें झुकाए बैठें है। शिवम राव मणि