कवितानज़्म
अरे! उसे ऐसे ना कहो
वो अनजान है।
वो अपनी ही दुनिया में है
या फिर परेशान है
वो खोया है अपने ही रंग में
या खोया है गहरी सुरंग में
वो चल रहा है कोई नई राह
या भटक गया है यहां वहां
बुन रहा है कोई सपना हक़ीक़त
या सह रहा है कोई बैंत सख़्त
वो कहता है कोई शब्द तीखे
या झुंझलाहट है जो अंदर चीखें
वो हंस रहा है या रो रहा है
मजाक कर रहा है
या खुद को खो रहा है
वो जैसा है सामने
क्या हक़ीक़त में वैसा है
या अंदर ही अंदर उलझन जैसा है
ये उससे ही पूछो वो ही जाने
क्या कोई अहजान है
अरे! उसे ऐसे ना कहो
वो अनजान है।