कविताअन्य
आँसू कलम ने भी बेइंतहा बहाए है
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हमने खुदपर ही यूँ सितम ढाए है
ये ग़म तेरे इश्क़ में हमने पाए है
हम तेरी रूह के क़रीब रहे है सदा
ये जो फ़ासले है तुम्हीने बढ़ाए हैं
महक उट्ठा है गुलशन यका- यक
वफ़ा के ये फूल किसने खिलाए है
जिन्दा थे तो न की कद्र जिन्होंने
आज हमारी कब्र ढूंढने वो आए है
जब भी लिखी गजल तेरी याद में
आँसू कलम ने भी बेइंतहा बहाए है
चराग़ प्रेम का रौशन करते करते
हम हथेलियां अपनी जला आए है
एक तेरे दर पे झुकता है सर मेरा
हाथ तेरे आगे ही"अमोल"फैलाए है
स्वलिखित तथा पूर्णतया मौलिक
सी यस बोहरा
"अमोल"