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काजल - Gita Parihar (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकलघुकथा

काजल

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शब्दाक्षरी प्रतियोगिता
काजल

सुहानी ने काजल लगी आंखों को आईने में एक बार फिर संवारा। जिंदगी के आइने में साहिल दिखा,अपने बाहों में भरते हुए उसकी आंखों में आंखें डालते अक्सर उन आंखों की गहराइयों में डूब जाने की बात करता।तब उम्र ही कितनी थी उसकी,अठारह भी पूरे नहीं हुए थे। छुईमुई सी उसकी बाँहों में जा सिमटती थी |
उसकी कसकर बांधी पोनीटेल को खोल कर कहता,खुले बालों में कायमत लगती हो,बाल बांधा मत करो।सुहानी के गाल सुर्ख हो जाते कान की लवें गर्म हो जातीं।वह उसे बेतहाशा प्यार करता।
उसने उसे घर से कीमती सामान लेकर भागने के लिए मना लिया।देख सुहानी,तेरे मां -बाप तेरी शादी मुझसे कभी न होने देंगे।हम भाग कर शादी कर लेंगे।तू कुछ गहने पैसे ले आना,देख मेरी बात पूरी सुन ,मुझे गलत मत समझना।हम कुछ दिन बाद वापिस आकर तेरे मां -पापा को मना लेंगे।उनसे माफी मांग लेंगे।सब पहले जैसा हो जाएगा। और....
सुहानी को रात प्लेटफार्म पर खाली हाथ देख साहिल के मंसूबों पर पानी फिर गया था।कहां उसने सोचा था..मगर वह हार मान लेने वालों में नहीं था...
अतीत की उन कड़वी यादों में गुम आज जब वह फिर शीशे के सामने बैठी तो एक-एक बात रील की तरह उसकी आंखों के आगे चलने लगी। पीछा नहीं छोड़ता उसका अतीत!
उसने बालों को कसा, जूडे में बाँधकर गजरा लपेट लिया।होंठो को सस्ती लाली से सुर्ख किया।पाउडर की एक और परत चेहरे पर थपथपाई।आंखों में आंसू झिलमिलाए, कहीं काजल फैल न जाए।मौसी दो बार चिल्ला चुकी है कि ग्राहक आ चुका है।
गीता परिहार
अयोध्या

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

आदरणीय रचना एडिट कर प्रतियोगिता वाला ऑप्शन पर क्लिक कर प्रतियोगिता का चुनाव किजियेएगा। अभी रचना ऐड नही हुई है प्रतियोगिता में

दादी की परी
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