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सोने का पिंजरा - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

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सोने का पिंजरा

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#. 28

सोने का पिंजरा

पिंजरे में पंछी को दाना पानी सब समय पर मिल जाता है।किंतु नहीं मिलती तो मनचाही आज़ादी। लगता है जैसे उसके पंख ही कट चुके हैं। पिंजरे में रहते रहते मानो उसके पंख ही काट दिए गए हो।ये ही हाल आज के नन्हें मुन्नों के हो रहे हैं।अपनी अधूरी आकांक्षाओं के चलते अभिभावक गण अपने बच्चों को हर सम्भव सुविधाएं जुटा देते हैं।परंतु उनकी पसन्द की स्वाभाविक प्रवर्तियों को दबा देते हैं। मानो स्वच्छंद उड़ते पंछियों के पंख ही काट दिये हो।
देश स्वतंत्र हो गया किन्तु थोप गए अपनी अंग्रेजियत।
मातृभाषा को छोड़ बच्चों को अंग्रेजी काव्यकोष रटना पड़ता है जो उसके सर के ऊपर से जाता है। वह घर व घाट दोनों से हाथ धो बैठता है।
हर कोई चाहता कि संगीत गीत में रुचि रखने वाला उनका बच्चा डॉ या इंजीनियर ही बने । यही हुआ ना कि कव्वे से गाने को कहो।
ऊपर से कोचिंग व अन्य क्लासेस ,,,,एक मशीनी
ज़िन्दगी बना देती हैं। छुट्टियों में भी क्लासेस पीछा नहीं छोड़ती। खेल कूद दौड़ भाग सब बन्द।बचपन क्या होता है,नानी का गाँव कैसा होता है ,आदि आदि बातों से ये नौनिहाल अनभिज्ञ हैं।हमने उनके पंख जो काट दिए हैं
सरला मेहता

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Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

सही कहा

Gita Parihar

Gita Parihar 3 years ago

करियर की चिंता यह सब करवाती है।

Champa Yadav

Champa Yadav 3 years ago

बहुत.... खूब....आदरणीय।

Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 4 years ago

चैतन्यपूर्ण

समीक्षा
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