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मासूम बचपन - नेहा शर्मा (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

मासूम बचपन

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जब भी शिक्षण की बात उठती है अक्सर कुछ प्यारी सी बातें मस्तिष्क पटल पर उभर आती हैं। प्यारी इसलिये की नन्हे मुन्ने से बच्चो से जो जुड़ी हुई है। मेरा शिक्षण का यह पहला अनुभव ही था। इंटरव्यू दिया और मैं छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए चुनी गई। क्योंकि यह मेरा भी पहला ही अनुभव था। सबसे पहले मुझे डेमो के लिए छोटे बच्चों की कक्षा में ले जाया गया। बच्चों का यह ब्रेक का समय था सभी बच्चे खेल रहे थे। कोई घोड़े पर तो कोई स्लाइड पर कोई खेल रहा था तो कोई खा रहा था। कक्षा में कदम रखते ही ऐसा महसूस हुआ कि किसी अनजानी सी ऊर्जा ने अंदर से भर दिया हो। जबकि यह मेरा पहला ही एक्सपीरियंस था। मेरे कक्षा में जाते ही बच्चे जो किसी किसी कार्य में थे सभी वही रुक गए और सीधे खड़े होगये। तभी प्राध्यापिका ने मेरा परिचय सभी से कराया। बच्चे छोटे थे परन्तु प्राध्यापिका की बात ध्यान से सुन रहे थे।

अगले दिन से मैंने कक्षा में मैंने जाना शुरू कर दिया। शिक्षिका ने मेरी कक्षा में टेबल पर एक छड़ी रख दी थी। कक्षा में जैसे ही मैंने प्रवेश किया बच्चों ने खड़े होकर गुड मॉर्निंग के लंबे उच्चारण के साथ मेरा स्वागत किया। मैंने सभी को सीट डाउन बोला तो सभी चुप होकर बैठ गए।

मैंने जैसे ही छड़ी को उठाकर देखा तो सभी बच्चे सहम गए। मैंने छड़ी को उठाकर बाहर दीवार से लगाकर रख दिया क्योंकि मुझे उसकी जरूरत महसूस नही हुई।

शिक्षिका को छड़ी बाहर रखते देख बच्चे खुश हो गए। मैंने पुस्तक खोलकर पढ़ाना शुरू किया। ब्रेक टाइम था और मैं बच्चों की डायरी में होम वर्क नोट कर रही थी। तभी बच्चे मुझसे पानी पीने के लिए पूछने लगे थोड़े थोड़े अंतराल के बाद। मैं काम करने में इतनी मगन हो गयी कि ध्यान ही नही दिया पूरी कक्षा खाली हो गयी। देखते ही मैं बाहर की तरफ चल दी। देखती हूँ तो पानी की बोतल के पास बच्चों ने घेरा लगा रखा है।

तभी मैंने आवाज लगाई तो भीड़ खाली हुई। उनमें से एक बच्चा जो गीला था मेरे पास तोतली आवाज में आकर बोला।

"मैदम इचका बतन तुत दया था लदा नही"

मैंने जाकर देखा तो बच्चे टँकी पकड़कर खड़े थे और पानी को रोकने की कोशिश कर रहे थे जिसमें वो गीले भी होगये।
मैं जल्दी से भागकर गयी और टँकी के ऊपर से बोतल हटा दी।

सभी बच्चों को नैनी को कहकर जो दूसरे कपड़े पेरेंट्स से मंगवाये थे बदलवा दिए।

एक बच्चे ने मासूमियत से आकर पूछा।

"मैदम आप दाँतोगी"

मैं हँस पड़ी, मेरी हंसी देखकर बच्चे थोड़े रिलेक्स हो गए। मैंने उसे सीट पर बैठने के लिए कहा।

फिर सब बच्चों को प्यार से कहा।

"अच्छा सभी मेरी बात ध्यान से सुनो। अगर आगे से कभी ऐसा कुछ भी हो लगे कि यह गलत हो रहा है तो अपने किसी भी बड़े को जरूर बोलना क्योंकि बड़े हमारी सभी समस्या का समाधान चुटकी में कर देते हैं।"

तभी एक बच्चा बोला

"मैदम मैंने तहा था मैदम को बुला लूँ तो इचने बुलाने नही दिया।"

मैंने उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा,
"कोई बात नही परन्तु आगे से कभी ऐसा हो ना तो बड़ों को बोलना उनके पास जादुई छड़ी होती है जिससे वो सब समस्या का समाधान चुटकी बजाते ही कर देते हैं।

तभी एक बच्ची "बिल्कुल एक परी की तरह या जादूगर की तरह"

"हाँ बिल्कुल वैसे ही, अच्छा चलो अब मुझसे अपनी अपनी डायरी ले लो और अब हम पढ़ते हैं अंग्रेजी, अंग्रेजी की पुस्तक निकालो"।

कहकर मैं और बच्चे पढ़ने में व्यस्त हो गए। द्वार पर खड़ी प्राध्यापिका मुस्कुरा रही थी और वहां से कुछ कहे बिना ही चली गयी। - नेहा शर्मा

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Anujeet Iqbal

Anujeet Iqbal 3 years ago

सुंदर संस्मरण

दादी की परी
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