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अपनी हिन्दी भाषा - Kamlesh Vajpeyi (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

अपनी हिन्दी भाषा

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*यादों के झरोखे से....*

*हिंदी दिवस पर एक हृदय स्पर्शी संस्मरण*
यायावर गोपाल खन्ना द्वारा लिखित.

सन 2015 में, मैं जब अमेरिका से भारत आ रहा था तो मुझे इस बार एम्स्टर्डम में फ्लाइट बदलनी थी। एम्स्टर्डम मैं पहली बार जा रहा था। मेरे साथ मेरी पत्नी और एक परिचित महिला और थीं। यहाँ पर करीब ढाई तीन घण्टे का समय मिला था। एम्स्टर्डम का एयरपोर्ट यूरोप के बड़े हवाई अड्डों में से एक है। जिस गेट पर हमारी फ्लाइट एटलांटा से आई थी उससे वो गेट जहाँ से नई दिल्ली की फ्लाइट लेनी थी, वह करीब एक किलोमीटर दूर था। यात्रियों की सुविधा के लिये बैटरी चालित वाहन उपलब्ध थे। जो कुछ देर बाद मिलने वाले थे।
मैंने सोंचा चलो जब तक एयरपोर्ट घूम लिया जाय। यहाँ पर पथ के दोनों तरफ बहुत बड़ा आलीशान मार्केट है। भीड़ का तो कहना ही क्या जैसा कि होता ही है बड़े एयरपोर्ट पर तो पूरी दुनिया के नागरिक अपने अपने अंदाज में सजे बने दिखते ही रहते हैं।हालांकि सारी सूचनाये अंग्रेजी में भी लिखी हुई थी पर गेट नम्बर 12 जी, जहां से मुझे अपनी फ्लाइट पकड़नी थी उसका कुछ पता नहीं चल रहा था। तो मैंने एक आदमी से जो एक रेस्टोरेंट के बाहर खड़ा था उससे अंग्रेजी में पूछा वेयर इज़ गेट नम्बर 12 जी।
उसने मुझे बड़े ग़ौर से देखा और हिंदी में बोला सीधे जा कर बायें बाजू मुड़ कर पड़ेगा। उसके मुँह से अपनी मात्र भाषा हिंदी सुन कर मुझे बहुत अचरज और खुशी हुई। वह मेरे अचरज का भाव समझते हुये मुस्कराया। मैंने कहा भाई साहब मैंने तो आपसे अंग्रेजी में पूछा था तब फिर आपने यह कैसे जान लिया कि मैं भारतीय हूँ और आपने अंग्रेजी के बजाय हिंदी में जबाब दिया। वह फिर मुस्कराया बोला मैं अपने देश वासियों को पहचानने में कभी गलती नहीं करता। मैंने कहा मैं पाकिस्तानी भी तो हो सकता था। उसने कहा ये गलती तो हो सकती थी पर भारतीयों के चेहरे पर एक सज्जनता होती है वह पाकिस्तानियों के चेहरे पर बहुत कम नजर आती है। बस यही फर्क है दोनों में।
उस ब्यक्ति ने अपना नाम रोहित रावल बताया वह राजकोट का रहने वाला है, वह इस रेस्टोरेंट में मैनेजर है तथा पांच साल से यहाँ पर है।
उसने मुझे साथ काफी पीने के लिए भी कहा। मैंने उसे अपने बारे में बताया। वह राजकोट में मेरे मित्र डॉक्टर दीकिवाढिया को भी जानता था। मेरे पास समय कम था क्योंकि मेरी पत्नी वहाँ मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। इसलिए उनसे गले मिलकर विदा ली।
कुछ समय बाद मैं एयर पोर्ट के वाहन से गेट नम्बर 12 जी पर पहुँच गया। मेरे पास अभी भी डेड़ घण्टे का समय बाकी था।
हम लोग कुछ गर्म खाने की सोच ही रहे थे कि देखा रोहित भाई हाथ मे कुछ लिये चले आ रहे हैं। वह हम लोगों के लिये वेज बर्गर लाये थे। करीब आधा घण्टा हम लोग साथ रहे।
कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि अपने वतन से पांच हजार किलोमीटर दूर कोई अनजान इतने अपनेपन से बर्गर खिलायेगा।
उन्होंने मेरी बेटी से यू एस में और मेरे बेटे से भारत मे अपने फोन से बात भी कराई। चलते हुये पतों और फोन नम्बर का आदान-प्रदान भी हुआ।
जब मैं प्लेन में बैठ गया तब सोंच रहा था ये हमारी मात्र भाषा हिंदी ही थी जिस कारण हम लोग इतने करीब आ गये। अगर उस व्यक्ति ने मेरी बात का अंग्रेजी में जबाब दिया होता तो हम लोग कहाँ ये रिश्ता बना पाते।
अपनी मात्रभाषा मे कितना चुम्बकीय आकर्षण होता है ये मुझे उस दिन बहुत गहरे से समझ मे आ गया।
रोहित भाई से होली दीवाली पर हिंदी में बधाइयों का लेना देना हो जाता है। उसके बाद से मैं पुनः एम्स्टर्डम नहीं जा पाया हूँ पर दिल में एक उमंग तो है कि एम्स्टर्डम एयरपोर्ट पर रोहित रावल नाम का अपना एक मित्र तो है जिसके साथ काफी पियेंगे।
है न दिल को कितना सुकून देने वाली बात।

*यायावर गोपाल खन्ना* कानपुर

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दादी की परी
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