कवितालयबद्ध कविता
लोग बदलने को कहते हैं मैं खुद जैसी हो जाती हूँ।
बदलती हूँ थोड़ा तो रंगहीन सी हो जाती हूँ।
नेहा के नेह को मत परखो तुम कभी
जली कभी कोयले सी तो अंगार सी हो जाती हूँ
बना दो हुक मुझे उसकी शर्ट का तुम
कि प्यार मोहब्बत में बड़ी अनजान सी हो जाती हूँ।
लड़कपन सी बातें अब कहाँ होती हैं मुझसे
बुढ़ापे में भी जवानी की बहार सी हो जाती हूँ।
चलो आज परख ही लो तुम मोहब्बत को मेरी
मैं हवाओं में घुलकर बड़ी ही सदाबहार सी हो जाती हूँ।
नेहा कहेगी तो कह दोगे झूठी है बड़ी।
मैं जीवन की कश्ती में मझदार सी हो जाती हूँ। - नेहा शर्मा