कहानीलघुकथाबाल कहानी
‘ बाल मजदूरी एक अपराध है’
पहले इस कथन के बारे में सोचें और फिर ऐसी स्थिति की कल्पना करें जहां एक छोटे से बच्चे के ऊपर भी घर के खर्चों की जिम्मेदारी आ सकती है।
लोकडाउन से महीने भर पहले की बात है जब वो सामान लेने दुकान पर आया। अपना नाम बताते हुए उसने उधारी की बात कह दी। मेने रजिस्टर में झांका तो कहीं भी उससे मिलता जुलता नाम तक नही दिखा। मेने मना कर दिया तो उसने अपनी मम्मी के नाम से रजिस्टर में अपने अस्तित्व का दावा किया। मेने देखा और खेद जताते हुए उसकी सिफारिश को पूरा किया।
धीरे धीरे वक्त गुजरा और लोकडाउन लगा। ये बला कैसी थी और कब तक रहने वाली थी , नही पता था। पर बहुत दिनों की बाद जब लोकडाउन खुला तो सबके चेहरे उतरे हुए। जरूर लोकडाउन खुल चुका था लेकिन पाबंदिया तो अपने जोरो पर थी। लोगों के काम छीन गए तो उन्होंने आय के दूसरे स्त्रोत ढूंढ निकाले। लेकिन एक दिन जब किसी को कहते हुए सुना कि - देखो ये सुबह पूरी ठेली भर के सब्जियां ले गया था और शाम होते होते सारी बिक गयी।
मेने ये सुनकर उत्सुकता के मारे सिर ऊपर किया तो सामने वही बच्चा , जिसका कद ठेली से कुछ ही ऊपर होगा, अपनी मजबूरी को चुनौती देकर ठेली को धक्का लगाए जा रहा था। तब अपने ही दृढ़ कथन पर अचरजता महसूस हुई, कि जितने हो सके हमे उतने विकल्प तलाशने चाहिए, ये नही तो वो सही।
पर सामने से गुजर रहा विकल्प परेशान कर गया जो अपने कन्धों पर एक जिम्मेदारी ढोता जा रहा था।
मर्मस्पर्शी..! आज की वास्तविकता
शुक्रिया सर
उफ्फ सत्य के करीब। कोई समझता भी नही बच्चों से कम करवाना अपराध है। उन्हें अच्छी शिक्षा देने का जिम्मा कोई क्यों नही उठाता है
जी बिलकुल सही कहा, ऐसी मानसिकता को समझना बहुत ही मुश्किल है