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Section | Genre | Rank |
---|---|---|
कहानी | सस्पेंस और थ्रिलर | 5th |
London is the capital city of England.
कवितागजल
रस्ता मिल जाता है पर मकाम आसान नहीं होते
भटकना जरूर पर दुखी मन वीरान नहीं होते।
हर एक कदम में टूटेगा हौसला मंजिल तक
यही तो कामयाब जिंदगी है, हैरान नहीं होते।
तेरी जिंदगी तुझे धूल चटा देगी
ना बना
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कहानीसस्पेंस और थ्रिलर
समय
२०३८
आधुनिक हरिद्वार
८ दिसंबर २०३८
स्नेहा आंटी:- शायद आज ही वो तारीख है जब जया स्नेहा को समय भवर में फसा देगी…? मुझे जल्दी जाना होगा ।
………….
ऑफिसर रिसो:- रुद्र आज पांच दिन हो गए है, शांतनु की मौत
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कहानीप्रेम कहानियाँ, सस्पेंस और थ्रिलर, संस्मरण
अरविंद गोस्वामी व्यापारियों में सोलवीं सदी का जाना माना नाम मुझे हर एक चीज जो व्यापार से जुड़ी है उससे प्रेम था बहुत मेहनत कर मैंने इस व्यापार को बढ़ाया अनाजों का व्यापार बहुत ही लाभदायक है, परंतु
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कहानीप्रेम कहानियाँ, सस्पेंस और थ्रिलर, संस्मरण
ये कहानी तीसरे जन्म से शुरू होती है इससे पहले के दो जनम थे याद नही पर जब विचार करती हूँ तो आंखें चोथे वर्ष में खुलती है शायद यही मेरा पहला जन्म है जहां माथे पर तिलक लगाए सब घर घुमा करती मेरी प्रवृति
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कवितालयबद्ध कविता
सोलह बारे बरत रखूं न हो कोई चुभन
फल में मांगू जिऊं तो सुहागन मरु तो सुहागन।
मैं सजती तब थी जब सँवरती नहीं थी
मेरा सँवरना जैसे रुप तेरा मोहन।
जिंदगी हों या रस्ते तेरे हाथों से पार हुई
हाथ हैं कश्ती
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कविताअतुकांत कविता
ये जो मोहब्बत है
जो तुम्हें हुई है
जो किसी को हो रही है
कल के दिन खुद की गलती से
जब नाकाम हो जाओगे
या नाकाम कर दिए जाओगे
और जब खुद की सोच को
एक दायरे में बांध दोगे
कभी मरने की सोचोगे
कभी मारने की सोचोगे
जीवन
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कवितागजल
इस तरह न रूठा कर मेरा दूसरा मुकद्दर तो नहीं
दायरे की दरिया हूं सुख जाऊंगा कोई समंदर तो नहीं।
जिया नाराजगी में समझ खो देती है कफ़न मांगती है
पिया तेरे दामन ढकने तक तो हूं पर वो चादर तो नहीं।
कुछ बाते
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कवितागजल
समझा दूँ एक अकसना जैसे ग़ज़ल
अश्क गिरते हैं जैसे झरना जैसे ग़ज़ल।
ख्वाब तो ख्वाब में ही टूट जाते हैं
टूटे मोती का हिरा बनना जैसे ग़ज़ल।
उड़ान तो परिंदे कई भरते हैं
गिरकर फिर उड़ान भरना जैसे ग़ज़ल।
फूरसत
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जी इसमें मीटर और बहर नही है तो यह गजल तो नही परन्तु बहुत सुंदर कविता है। बहुत अच्छा लिखा है आपने
जी यह बे बहर ग़ज़ल है। इसलिए मीटर ध्यान में नहीं है । शुक्रिया आपका
कवितागजल
मैं रोशनी पलट दूँ की ऐसे अल्फाज़ लिख दूँ
धार है मेरे कहने मे अगर खंजर को आवाज़ लिख दूँ।
मिट्टी मे मिल जाते हैं आकाश कई अक्सर
बंजर पेरो से उड़ी थी जो धूल वो परवाज़ लिख दूँ।
जिवन का अंत अगर मृत्यु
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कवितालयबद्ध कविता
युगो युगो की बात को ना दोहराओ कलियुग है ये
आज सति मे रति वासना मे डुबा युग है ये
प्रथम चरणे इक्यानवे वर्ष का पहला दिन है ये
वैवस्वत् चल रहा है संवत् कलि है ये
कलियुग को प्रलय क्यो बताया महापरिवर्तन
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कविताछंद
वो सिर्फ अपने लिए कहता,
तेरे बिन जिंदगी कुछ कम थी।
कभी मेरे श्रृंगार से वाक़िफ होते
मेरी आंखे भी नम थी।
कभी कोशिश तो की होती
मुझको मुझसे ही चुराने की
“मुझसे” वहीं छोड़ गए तुम
सिर्फ़ कोशिश की मुझको
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