कवितालयबद्ध कविता
तोड़ इन जंजीरों को हवा की तरह बह जाऊं।
मेरा भी एक मन है कभी उस मन को ये बतलाऊँ।
बातें करूँ खुद से घन्टो बैठकर कभी।
उलझनों को दूर रख खुद को भी तो सुलझाऊँ।
एक गाना जो अरसे से दिमाग में ठहरा था
उसे खुलकर हँसकर गुनगुनाऊँ।
चलो इस औरत वाले बंधन से निकलकर
आज आज़ाद हवा में लहराऊं
बाते अनसुनी करके बेफिक्री से साँस लूँ
मैं भी आज हाथ से दुख की लकीरों को मिटाऊँ।
चलो पहले वाली नेहा बन जाऊं
निश्चिंत सी जिंदगी को गिटार के संगीत की तरह आजाद बनाऊं।
बन्द पन्नों पर नही खुली किताब की तरह हो जाऊं
सरल सी जिंदगी को जिंदादिल बनाऊं
चलो आज हवा के होंठों पर गीत सजाऊँ
आज फिर से राजेश खन्ना के गीतों पर इतराऊँ
मेरे दिल में आज क्या है, तू कहे तो मैं बता दूँ
तेरी जल्फ़ फिर सवारूँ
ला ला ला ला ला ला - नेहा शर्मा