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खुद को बहलाते रहे - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

खुद को बहलाते रहे

  • 60
  • 1 Min Read

जो हम कभी नहीं पढसके जमाने को पढाते रहे
जो हम नहीं समझ सके जमाने को समझाते रहे

राहे -हयात पर चलने की कोशिश में हुए गुमराह
दश्त-ब-दश्त वहमे-सफ़र से खुद को बहलाते रहे

© "बशर"

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