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कवितानज़्म
जो हम कभी नहीं पढसके जमाने को पढाते रहे जो हम नहीं समझ सके जमाने को समझाते रहे राहे -हयात पर चलने की कोशिश में हुए गुमराह दश्त-ब-दश्त वहमे-सफ़र से खुद को बहलाते रहे © "बशर"