कहानीसामाजिकसस्पेंस और थ्रिलरप्रेरणादायक
धारावाहिक... नामुमकिन कुछ भी नहीं
भाग 2.
उसने सीमा को नहीं जगाया...
बाहर आकर , कार स्टार्ट की,सोचा रास्ते में कुछ खा लेगा ,चाय की तलब हो रही थी।
घर पर एक निगाह डाली।कभी यह घर उसे अपने सपनों का महल लगा था।शहर से थोड़ा दूर था मगर चारों और खुली जगह ,आगे लॉन था और टेरेस ने तो उसका मन मोह लिया था,दूर तक हरियाली ही हरियाली थी।
उसने घर के लॉन पर नजर डाली, बेतरतीबी से उगी खर पतवार और पड़ोसी का ताज़ा बना हुआ लॉन उसे मुंह चिढ़ा रहा था ।वह याद करने लगा आखिरी बार उसने लॉन की कटाई- छंटाई कब की थी !
दरअसल सुबह देर से ही उठ पाता है। दिन भर की आपाधापी के बाद दिन ढले घर लौटता है।अब ऐसे में लॉन की देखभाल कब करे ?गराज से निकाल , बिना कार को साफ किए ही कई बार चल पड़ता है।आज भी यही किया।
सीमा ने एक अंगड़ाई ली और घड़ी की ओर देखा 9:00 बज रहे हैं ।हर रोज वह यह सोच कर सोती है कि सुबह जल्दी उठेगी.. पति के लिए अच्छा सा नाश्ता बनाएगी ..दोनों साथ बैठकर चाय का आनंद लेंगे और कुछ बातें करेंगे..उसे याद नहीं उन्होंने आराम से बैठ कर कब बातें की थीं!10 घंटे स्टोर में खड़े रह कर,घर पहुंचने के बाद उसके अंदर ताकत ही नहीं बचती है कि वह सुबह 9:00 बजे से पहले बिस्तर छोड़ सके। वह उठी बाथरूम की ओर बढ़ी। वह सुबह तैयार होने से पहले अपने आपको आईने में नहीं देखती ...!
उसने अपना चेहरा धोया, ब्रश किया.. सोचने लगी ...
,काम पर निकलने से पहले घर के क्या काम कर सकती है ..फिर सोचा घर पर कौन है जो घर की देखभाल की जाए ? बस ब्रेड टोस्ट ,मक्खन लिया एक कप चाय । तैयार हो ही रही थी कि फोन की घंटी बज उठी, मिसेज बत्रा ने उसे याद दिलाया कि आज सेल में जाना है क्योंकि आज सेल का आखिरी दिन था। उसका मन सेल में जाने का बिल्कुल नहीं कर रहा था ..मगर पहले से कह रखा था तो जाना ही था ..घर में ताला लगा कर वह निकली।उसने देखा मिसेज बत्रा इंतेज़ार कर रही थीं। सेल में इतनी भीड़ थी मानो चीज़ें मुफ्त बंट रही हों।वैसे उसे किसी खास चीज़ की ज़रूरत नहीं थी ..फिर भी उसने तीन-चार डेकोरेटिव चीज़ें उठा लीं। उन चीज़ों को मिसेज बत्रा ने उचटती निगाह से देखा, वे बेहद मामूली और बिलो स्टैंडर्ड सामान था ...उंह.. काफी हिकारत से उन्होंने सीमा की चॉइस को देखा।वे सस्ती और बेकार की चीजें थी उनकी नज़र में ...! सीमा ने सामान पैक कराया ,मिसेज बत्रा से फिर मिलने का वादा कर वहां से निकली।बाहर थोड़ी खुशगवार धूप निकल आई थी,उसने कोट के बटन खोल दिए,स्कार्फ को भी ढीला किया,लंबे डग भर्ती हुई स्टोर के लिए पैदल ही चल पड़ी । क्रमशः..